Saturday, February 1, 2025
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जब 200 आतंकियों ने काबा के सामने अचानक 1 लाख नमाजियों को घेर लिया था, जानिए मक्का की वो 1979 की घटना

दुनिया भर से लाखों मुसलमान हज यात्रा के लिए सऊदी अरब जाते हैं. साल 1979 में इस पवित्र यात्रा के बाद यहां एक हमला ऐसा हुआ था, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. अपने आपको खुदा का भेजा हुआ मसीहा बताकर 200 से ज्यादा आतंकी मक्का की मस्जिद अल-हरम में घुस गए और हजारों नमाजियों को बंधक बना लिया था. ये हमला सऊदी के आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा हमला माना जाता है.

20 नवंबर 1979 वो दिन था जब मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा में हज के सभी अरकान पूरे हो चुके थे बहुत से लोग अपने-अपने देश लौट चुके थे. इसके बावजूद वहां करीब एक लाख लोग खाना ए काबा में मौजूद थे क्योंकि वह उस साल का पहला साल का पहला दिन था यानी मुहर्रम था. यह लोग उम्मीद कर रहे थे कि बादशाह अरब शाह खालिद खाना ए काबा में आएंगे और सदी की पहली फजर की नमाज में शिरकत करेंगे.

मक्का की मस्जिद अल-हरम में सुबह की नमाज (फज्र) के वक्त (5 बजकर 15 मिनट) पर लोग नमाज अदा करके बैठे ही थे कि सफेद कपड़े पहने हथियारों से लैस हमलावरों ने नमाजियों को घेर लिया. वह माइक लेकर अपने लोगों को पोजीशन लेने का ऑर्डर देने लगा. वह अरबी में बोल रहा था.

मस्जिद अल-हरम में  चीटी को मारना भी गुनाह है, वहां तैनात सिक्योरिटी कभी हथियार नहीं रखते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल ये था कि आखिर इन लोगों के पास हथियार कहां से आए. ये पहले से ही मस्जिद में मौजूद थे और उनके हथियार वहीं ताबूतों में रखे हुए थे. सिक्योरिटी फोर्सेस की आंख में धूल झोंक कर उन्हें जनाजे की शक्ल में अंदर लाया गया था.

मस्जिद अल-हरम में जैसे ही नमाज खत्म हुई लोगों ने सलाम फेरा वैसे ही लोगों के कानों में गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी. इससे हरम शरीफ में बेखौफ घूमने वाले परिंदे भी फड़फड़ाने लगे और हथियारबंद लोग बस यहां से वहां पोजीशन लेने लगे. इस बीच मस्जिद के माइक से ऐलान हुआ कि इमाम मेहंदी आ चुके हैं और अब जुल्म और नाइंसाफी से भरी इस दुनिया में इंसाफ होगा. माइक के पास खड़ा हुआ शख्स जिसका नाम जुहा मन अल तबी था, उसने नमाजियों में से एक शख्स की तरफ इशारा करके कहा कि यह इमाम मेहंदी हैं. जिस शख्स को इमाम मेहंदी बताया गया, उसका असली नाम मोहम्मद अब्दुल्ला अल कहतानी था.

खौफ से भरे करीब 1 लाख लोग जब मस्जिदुल हरम से बाहर निकलने के लिए दरवाजों की तरफ भागे तो मालूम चला दरवाजे पहले ही लोहे की चैन से बंद कर दिए गए हैं. इसके बाद हथियारों से लेस 45 साल का शख्स हाइमन अल तबी खाना ए काबा के इमाम के माइक के पास फिर पहुंचता है औरमाइक के पास फिर पहुंचता है और धमकी देता है कि किसी ने भी कोई गड़बड़ की तो उसे मार दिया जाएगा.

वहां मौजूद एक लाख लोगों में से अधिकर अरबी नहीं जानते थे, इसलिए आतंकियों ने भारत-पाकिस्तान के नागरीकों को अलग किया. उसमें से एक ऐसे शख्स को उठाया जो अरबी, हिंदी और उर्दू जानता हो. बाकी देशों के लोगों के लिए इंग्लिश में मैसेज देने के लिए उनके पास लोग थे. इस हमले का नेतृत्व जुहेमान अल ओतायबी कर रहा था, जो पहले सेना में रह चुका था और वो इस्लामिक शिक्षा देने वाले छात्रों के एक गुट का नेता था.

अफरी तफरी की खबर लगते ही मस्जिद परिसर में तैनात पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए थे. जिस मस्जिद पर हमला हुआ था. उस वक्त सऊदी इंटेलीजेंस के चीफ प्रिंस टर्की अरब लीग में हिस्सा लेने के लिए क्राउन प्रिंस फाहद के साथ ट्यूनीशिया गए हुए थे. इसके अलावा सऊदी नेशनल गार्ड्स के चीफ प्रिंस अब्दुल्ला भी मोरक्को में थे. इस हमले की जानकारी की जानकारी मिलने के बाद ऑपरेशन की तैयारियां शुरू कर दी गईं.

इस ऑपरेशन में सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि मस्जिद में कोई बड़ा सैन्य हमला नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ये मस्जिद इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है और काबा भी यहीं मौजूद है. सऊदी की सेना ने धर्मगुरुओं से सैन्य ऑपरेशन शुरू करने की इजाजत मांगी. इजाजत मिलने के बाद सऊदी की सेना मस्जिद परिसर की ओर बढ़नी लगी. हथियारों से लैस होने और परिसर में सीमित कार्रवाई कर सकने की वजह से सेना अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पा रही थी. देखते ही देखते एक हफ्ता गुजर गया और अभी भी हमलावर अंदर ही थे.

इसके बाद सऊदी अरब सरकार ने पाकिस्तान और फ्रांस से मदद मांगी, जिसके बाद दोनो देशों की सेना सऊदी के लिए निकल पड़े. विदेशी मदद मिलने के बाद सऊदी सेना की स्थिति मजबूत हो गई. करीब दो हफ्ते बाद चले ऑपरेशन से मस्जिद  के थोड़े हिस्से पर सऊदी सेना और थोड़े पर हमलावरों का कब्जा बच चुका था. कुछ हमलावरों ने मस्जिद के अंडरग्राउंड एरिया में पनहा ली. सिक्योरिटी फोर्सेस ने हमलावरों को बाहर निकालने के लिए स्मोक बम फेंके, जिससे सांस लेने में दिक्कत आने लगी और हमलावरों ने सरेंडर कर दिया.

14 दिनों तक चले इस ऑपरेशन के बाद करीब 137 हमलावरों को मार गिराया गया और 63 को गिरफ्तार कर लिया गया. 63 हमलावरों को गिरफ्तारी के एक महीने बाद सऊदी अरब के आठ शहरों में सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दी गई थी. इस हमले का जिम्मेदार ईरान ने अमेरिका को ठहराया था और पूरी दुनिया में इस हमले के विरोध में मुसलमानों ने प्रदर्शन किए थे. पाकिस्तान के इस्लामाबाद में गुस्साई भीड़ ने अमेरिकी दूतावास को आग के हवाले कर दिया था.

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