छत्तीसगढ़ में सिकल सेल एनीमिया बना आदिवासी स्वास्थ्य संकट, हर गांव में बढ़ रही बीमारी की जड़ें

प्रदेश की 9.5% आबादी सिकल सेल से प्रभावित या वाहक, बस्तर–सरगुजा में हालात गंभीर, विशेषज्ञों ने बताया विवाह पूर्व जांच और जागरूकता ही बचाव का रास्ता।



रायपुर, 16 दिसंबर 2025: छत्तीसगढ़ में सिकल सेल एनीमिया अब केवल एक आनुवंशिक बीमारी नहीं, बल्कि एक सामाजिक और स्वास्थ्य आपदा का रूप ले चुका है। बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है, जहां हर गांव में एक से दो बच्चे सिकल सेल से पीड़ित पैदा हो रहे हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की लगभग 9.5 प्रतिशत आबादी सिकल सेल से प्रभावित या वाहक है, जिससे छत्तीसगढ़ देश में इस बीमारी के मामलों में दूसरे स्थान पर है।

ग्राउंड रियलिटी: दर्द से कराहते मासूम और लाचार स्वास्थ्य ढांचा

बस्तर के कई गांवों में जिला अस्पतालों में दर्द से कराहते बच्चे, खून की कमी से जूझते युवा और बार-बार बुखार से परेशान महिलाएं आम दृश्य बन चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों को महीने में दो–तीन बार अस्पताल ले जाना पड़ता है, लेकिन कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में साल्यूबिलिटी टेस्ट तक उपलब्ध नहीं हैएचबी इलेक्ट्रोफोरेसिस और एचपीएलसी जांच जैसी उन्नत सुविधाएं केवल जिला मुख्यालयों तक सीमित हैं।

क्या है सिकल सेल और क्यों है यह खतरनाक

सिकल सेल एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें सामान्य गोल लाल रक्त कोशिकाएं अर्धचंद्राकार हो जाती हैं और नसों में फंसकर रक्त प्रवाह को बाधित करती हैं। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी, तेज दर्द, एनीमिया, संक्रमण और अंगों को नुकसान होता है। सबसे बड़ा खतरा तब होता है जब दो वाहक या पीड़ित आपस में विवाह करते हैं, जिससे बच्चा 100 प्रतिशत सिकल सेल रोगी हो सकता है।

सरकारी प्रयास और राष्ट्रीय मिशन

भारत सरकार ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन (NSCAEM) की शुरुआत की है, जिसके तहत 17 आदिवासी बहुल राज्यों में 6 करोड़ से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। छत्तीसगढ़ में भी जिला अस्पतालों से लेकर आयुष्मान आरोग्य मंदिरों तक जांच की व्यवस्था की जा रही हैराज्य सरकार ने 2025 तक सिकल सेल मुक्त छत्तीसगढ़ का लक्ष्य रखा है।

समाज की भूमिका: विवाह पूर्व जांच को मिल रहा समर्थन

साहू समाज और सिंधी समाज जैसे सामाजिक संगठन अब विवाह पूर्व सिकल सेल जांच को अनिवार्य बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। अश्वनी साहू और पवन पृतवानी जैसे समाजसेवियों का मानना है कि जागरूकता ही सबसे बड़ा इलाज है और विवाह से पहले जांच को कुंडली मिलान की तरह अनिवार्य किया जाना चाहिए।

सामाजिक कलंक और डर बना बाधा

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सिकल सेल को लेकर डर और सामाजिक कलंक बना हुआ है। लोग जांच कराने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें शादी टूटने का डर सताता है। इस मानसिकता के कारण कई बार बीमारी छिपा ली जाती है, जिससे अगली पीढ़ी को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

विशेषज्ञों की राय: रोकथाम ही समाधान

सीएमएचओ डॉ. मिथलेश चौधरी के अनुसार, सिकल सेल का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन समय पर जांच और नियमित दवा से मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। रोकथाम ही इसका सबसे प्रभावी उपाय है, विशेषकर विवाह पूर्व जांच और गांव-गांव में स्क्रीनिंग अभियान चलाकर।

निष्कर्ष:

छत्तीसगढ़ में सिकल सेल एनीमिया एक सामाजिक और स्वास्थ्य आपदा का रूप ले चुका है। इसे रोकने के लिए सरकारी योजनाओं के साथ सामाजिक जागरूकता और विवाह पूर्व जांच को जन आंदोलन बनाना होगा। अन्यथा आने वाले वर्षों में यह बीमारी प्रदेश के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

Richa Sahay

ऋचा सहाय — पत्रकारिता और न्याय जगत की एक सशक्त आवाज़, जिनका अनुभव दोनों क्षेत्रों में अद्वितीय है। वर्तमान में The 4th Pillar की वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप में कार्यरत ऋचा सहाय दशकों से राजनीति, समाज, खेल, व्यापार और क्राइम जैसी विविध विषयों पर बेबाक, तथ्यपूर्ण और संवेदनशील लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनकी लेखनी की सबसे खास बात है – जटिल मुद्दों को सरल, सुबोध भाषा में इस तरह प्रस्तुत करना कि पाठक हर पहलू को सहजता से समझ सकें।पत्रकारिता के साथ-साथ ऋचा सहाय एक प्रतिष्ठित वकील भी हैं। LLB और MA Political Science की डिग्री के साथ, उन्होंने क्राइम मामलों में गहरी न्यायिक समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण स्थापित किया है। उनके अनुभव की गहराई न केवल अदालतों की बहसों में दिखाई देती है, बल्कि पत्रकारिता में उनके दृष्टिकोण को भी प्रभावशाली बनाती है।दोनों क्षेत्रों में वर्षों की तपस्या और सेवा ने ऋचा सहाय को एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया है जो ज्ञान, निडरता और संवेदनशीलता का प्रेरक संगम है।

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