इंफोसिस के को-फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति ने कहा कि सिविल सर्वेंट का सिलेक्शन यूपीएससी एग्जाम की बजाय बिजनेस स्कूलों से किया जाना चाहिए. पीएम मोदी से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि 1858 से देश में चल रहे इस सिस्टम को बदलने की जरूरत है.
नारायण मूर्ति (NR Narayana Murthy) ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी मैनेजमेंट स्कूलों से सिविल सर्वेंट की नियुक्ति करने पर विचार कर सकते हैं. मूर्ति ने एक मीडिया कार्यक्रम के दौरान कहा, पीएम मोदी ने अब तक हमारी इकोनॉमी को तेजी से बढ़ाने के मामले में बहुत अच्छा काम किया है. लेकिन सरकार को भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के लिए यूपीएससी एग्जाम पर निर्भर रहने की बजाय मैनेजमेंट स्कूलों से सिविल सेवा अधिकारियों के चयन पर विचार कर सकते हैं. अभी यूपीएससी (UPSC) की तरफ से आयोजित कंप्टीटिव एग्जाम में तीन या चार विषयों में परीक्षा देकर हिस्सा लेते हैं.
मूर्ति ने यह भी कहा कि मैनेजमेंट स्कूलों से जिन उम्मीदवारों का चयन किया जाए उन्हें ट्रेनिंग के लिए मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी ले जाया जाना चाहिए. वहां पर उन्हें एग्रीकल्चर, डिफेंस या मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा सकता है. यह सामान्य प्रशासक बनाने की मौजूदा तरीके से एकदम अलग होगा. उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने हमारी इकोनॉमी को रफ्तार देने के मामले में शानदार काम किया है. वह अब इस बात पर गौर कर सकते हैं कि सरकार में क्या हमें प्रशासकों के बजाय अधिक मैनेजर्स की जरूरत है.’
मूर्ति ने कहा कि सरकार को आईएएस प्रतिभा के लिए मौजूदा सिस्टम के बजाय मैनेजमेंट स्कूलों का उपयोग करने की जरूरत है. मौजूदा प्रणाली में उम्मीदवार संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा पास करने के बाद जब उसका चयन हो जाता है तो उसे ट्रेनिंग के लिए मसूरी (लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी) ले जाया जाता है. वहां उसे विशेष एग्रीकल्चर सेक्टर, डिफेंस या मैन्युफैक्चरिंग में ट्रेंड किया जाएगा. यह सामान्य प्रशासक बनाने की मौजूदा व्यवस्था से अलग होगा.
मूर्ति ने कहा कि सफल उम्मीदवार ट्रेनिंग पूरी होने के बाद विषय के विशेषज्ञ बन जाएंगे और 30-40 साल तक अपने संबंधित क्षेत्र में देश की सेवा करेंगे. उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रशासनिक रुख 1858 से जुड़ा है. इसमें बदलाव लाने की जरूरत है. इंफोसिस के को-फाउंडर ने लोगों की मानसिकता को बदलने की अपील करते हुए कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बनेगा जो सिर्फ प्रशासन उन्मुख होने के बजाय प्रबंधन उन्मुख होगा.’ मूर्ति ने प्राइवेट सेक्टर में नौकरी कर रहे बुद्धिजीवियों को कैबिनेट मंत्री के स्तर के बराबर समितियों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने और मंत्री और नौकरशाहों के हर बड़े फैसलों को मंजूरी देने का भी सुझाव दिया.
उन्होंने कहा कि किसी भी देश में सरकारी दखल को कम करने, कार्रवाई में सुस्ती और अक्षमता को कम करने की जरूरत है. हफ्ते में 70 घंटे काम करने पर उनकी विवादास्पद टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर मूर्ति ने कहा कि वह अपने बयान पर कायम हैं. उन्होंने कहा कि मोदी भी हफ्ते में 100 घंटे काम करते हैं. मूर्ति ने कहा कि जब 1986 में इंफोसिस में कामकाज हफ्ते में पांच दिन किया गया, तो उन्हें निराशा हुई. लेकिन वह खुद सप्ताह के साढ़े छह दिन 14 घंटे काम करते थे. उन्होंने 2014 में कंपनी में एग्जीक्यूटिव पद छोड़ दिया था.