ऐतिहासिक फ़ैसला: मुवक्किलों को कानूनी सलाह देने पर वकीलों को समन नहीं भेज सकती जांच एजेंसियां, सुप्रीम कोर्ट ने वकील-मुवक्किल गोपनीयता को किया मज़बूत

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जांच एजेंसियां अपने मुवक्किलों को कानूनी सेवाएं दे रहे वकीलों को पूछताछ के लिए समन (Summons) केवल सीमित और असाधारण मामलों में ही भेज सकती हैं। यह समन सिर्फ वहीं भेजा जा सकता है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 132 के अपवादों के तहत आते हैं—यानी, जब मुवक्किल ने किसी आपराधिक कृत्य में सहयोग मांगा हो। कोर्ट ने वकील-मुवक्किल के बीच गोपनीयता के विशेषाधिकार को बरकरार रखा है।



रायुपर, 31 अक्टूबर, 2025: देश की शीर्ष अदालत ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए वकीलों के पेशेवर विशेषाधिकार और वकील-मुवक्किल गोपनीयता को एक सुरक्षा कवच प्रदान किया है।

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की खंडपीठ ने जांच एजेंसियों द्वारा मनमाने ढंग से आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को समन किए जाने के मामले में स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए यह फैसला दिया। कोर्ट ने इस तरह के समन जारी करने पर कड़ी शर्तें लगा दी हैं।

धारा 132 है वकीलों का सुरक्षा कवच

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियां किसी भी वकील को केवल भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam – BSA) की धारा 132 के अपवादों के तहत ही समन भेज सकती हैं।

  • BSA की धारा 132 वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार को कानूनी मान्यता देती है। इसके तहत, एक वकील को मुवक्किल की स्पष्ट सहमति के बिना गोपनीय रूप से किए गए किसी भी पेशेवर संवाद या दस्तावेज का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • अपवाद: समन केवल उन मामलों में भेजा जा सकता है, जहां यह संदेह हो कि मुवक्किल ने वकील से किसी आपराधिक कृत्य या धोखाधड़ी को आगे बढ़ाने में सहयोग मांगा हो।

बेंच ने कहा कि इन अपवादों को छोड़कर, किसी भी अन्य मामले में वकील से मुवक्किल की तरफ से दिए गए दस्तावेज और जानकारी को सौंपने के लिए नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वकीलों को इस तरह समन भेजना उन अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, जिन्होंने अपने वकील में विश्वास जताया है।

समन भेजने के लिए उच्चाधिकारी की मंजूरी अनिवार्य

अदालत ने जांच एजेंसियों के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा:

  1. SP रैंक की अनुमति: वकील को समन भेजने से पहले, जांच एजेंसी के पुलिस अधीक्षक (SP) रैंक से नीचे के अधिकारी की पूर्व अनुमति अनिवार्य होगी।
  2. समन में आधार का स्पष्ट उल्लेख: अगर किसी आरोपी के वकील को समन भेजा जाता है, तो उस समन में स्पष्ट रूप से यह बताया जाना चाहिए कि किस आधार पर उस मामले को धारा 132 का अपवाद माना जा रहा है।
  3. न्यायिक चुनौती का अधिकार: वकील या मुवक्किल इस समन को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (BNSS) की धारा 528 (पुराने CRPC की धारा 482 के समानांतर) के तहत उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं।

कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि भले ही समन कानूनी हो, लेकिन पूछताछ को आवश्यक सीमा तक ही सीमित रखना होगा, ताकि वकील के अन्य मुवक्किलों की गोपनीयता भंग न हो।

इन-हाउस वकीलों पर लागू नहीं होगी छूट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जो वकील कोर्ट में पेशेवर तौर पर प्रैक्टिस नहीं करते हैं, यानी जो इन-हाउस वकील (In-house Counsels) हैं, उन्हें BSA की धारा 132 के तहत मिलने वाला पेशेवर संरक्षण (Protection) नहीं मिलेगा। हालांकि, BSA की धारा 134 के तहत उन्हें अपने मुवक्किल (कंपनी) के साथ की गई बातचीत के संरक्षण का अधिकार है।

इस ऐतिहासिक फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि वकील बिना किसी डर या दबाव के अपने मुवक्किलों को स्वतंत्र कानूनी सलाह दे सकें, जो न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह फैसला उन वकीलों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जिन्हें हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी एजेंसियों ने गैर-पेशेवर कारणों से समन भेजे थे।

Richa Sahay

ऋचा सहाय — पत्रकारिता और न्याय जगत की एक सशक्त आवाज़, जिनका अनुभव दोनों क्षेत्रों में अद्वितीय है। वर्तमान में The 4th Pillar की वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप में कार्यरत ऋचा सहाय दशकों से राजनीति, समाज, खेल, व्यापार और क्राइम जैसी विविध विषयों पर बेबाक, तथ्यपूर्ण और संवेदनशील लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनकी लेखनी की सबसे खास बात है – जटिल मुद्दों को सरल, सुबोध भाषा में इस तरह प्रस्तुत करना कि पाठक हर पहलू को सहजता से समझ सकें।पत्रकारिता के साथ-साथ ऋचा सहाय एक प्रतिष्ठित वकील भी हैं। LLB और MA Political Science की डिग्री के साथ, उन्होंने क्राइम मामलों में गहरी न्यायिक समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण स्थापित किया है। उनके अनुभव की गहराई न केवल अदालतों की बहसों में दिखाई देती है, बल्कि पत्रकारिता में उनके दृष्टिकोण को भी प्रभावशाली बनाती है।दोनों क्षेत्रों में वर्षों की तपस्या और सेवा ने ऋचा सहाय को एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया है जो ज्ञान, निडरता और संवेदनशीलता का प्रेरक संगम है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button