बीते तीन सालों (2022, 2023 और 2024) में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा 1000 टन से ज़्यादा सोने की रिकॉर्ड खरीदारी ने वैश्विक वित्तीय हलकों में चिंता बढ़ा दी है. यह खरीदारी पिछले दशक के औसत (400-500 टन प्रति वर्ष) से कहीं अधिक है, जो इस बात का संकेत है कि कुछ बड़ा होने वाला है. सोने को हमेशा से ‘सेफ हेवन’ यानी सुरक्षित निवेश माना गया है; जब भी दुनिया में राजनीतिक या आर्थिक अस्थिरता की आशंका होती है, निवेशक और केंद्रीय बैंक सुरक्षित संपत्ति के रूप में सोने का रुख करते हैं. इस बार मामला कुछ अलग है, क्योंकि यूरोपीय देशों से अमेरिका में रखे अपने सोने के भंडार को वापस बुलाने की मांग उठ रही है.
डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी बनी चिंता का कारण
दरअसल, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में सत्ता में संभावित वापसी ने यूरोपीय देशों को अपने सोने के भंडार (Gold Reserves) को लेकर अत्यधिक सतर्क कर दिया है. कई यूरोपीय देशों से अब यह आवाज़ मुखर हो रही है कि अमेरिका में न्यूयॉर्क स्थित फेडरल रिजर्व बैंक और लंदन स्थित बैंक ऑफ इंग्लैंड में सुरक्षित रखे गए उनके सोने को या तो वापस लाया जाए, या कम से कम उसकी पूरी जांच और स्वतंत्र ऑडिट की जाए. यह मांग ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और उनके अप्रत्याशित फैसलों के कारण भविष्य में उत्पन्न होने वाली भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के डर से प्रेरित है.
EU का सोना अमेरिका के तिजोरीखानों में क्यों
ऐतिहासिक रूप से, जर्मनी, इटली और फ्रांस जैसे यूरोपीय देश अपने सोने के भंडार का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित फेडरल रिजर्व बैंक या लंदन के बैंक ऑफ इंग्लैंड में इसलिए रखते आए हैं. इसके पीछे कई ऐतिहासिक और आर्थिक कारण रहे हैं:
* द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अस्थिरता: युद्ध के बाद यूरोप में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता चरम पर थी, जिससे अपने सोने को सुरक्षित रखने के लिए अमेरिका को एक विश्वसनीय और स्थिर स्थान माना गया.
* अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भरोसा: न्यूयॉर्क और लंदन वैश्विक वित्तीय केंद्र हैं, और इन स्थानों पर सोना रखने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और लेन-देन में अधिक सुविधा और भरोसा मिलता था. कोल्ड वॉर के दौरान भी यह एक सामरिक निर्णय था.
* सुरक्षा और भंडारण लागत: बड़े पैमाने पर सोने के भंडारण और सुरक्षा की लागत भी एक कारक थी. अमेरिका के पास ऐसे विशाल और सुरक्षित तिजोरीखाने थे जिनकी व्यवस्था यूरोपीय देशों के लिए व्यक्तिगत रूप से महंगी पड़ती.
Taxpayers Association of Europe (TAE) की खुली अपील और पारदर्शिता की मांग
Taxpayers Association of Europe (TAE) ने इस मुद्दे पर एक खुली अपील जारी की है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यूरोपीय देशों को अपना सोना अमेरिका से वापस मंगाना चाहिए या कम से कम उसकी इन्वेंट्री और स्वतंत्र ऑडिट करानी चाहिए. TAE का मानना है कि सोने का वापस आना ज़रूरी नहीं कि अपने ही देश में रखा जाए, लेकिन उस पर पूरी पहुंच और पारदर्शिता होनी चाहिए. यह मांग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अतीत में जर्मन सांसदों को भी न्यूयॉर्क फेड में रखे अपने सोने का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं मिली थी, जिससे पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठे थे.
ट्रंप और US Federal Reserve को लेकर चिंताएं
रिपोर्टों में कहा गया है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में लगातार US Federal Reserve की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हैं, खासकर ब्याज दरों को लेकर. ट्रंप की यह इच्छा रही है कि फेडरल रिजर्व व्हाइट हाउस के सीधे नियंत्रण में हो, जिससे उसकी स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है. ऐसे में यूरोपीय देशों को आशंका है कि अगर भविष्य में अमेरिका यह कहे कि विदेशी देशों को उनका सोना लौटाना “अनुचित” है, तो क्या होगा? 2014 में, जर्मनी ने अपने कुछ सोने को अमेरिका से वापस मंगाने का प्रयास किया था, जिसमें कुछ साल लग गए थे और पूरी पारदर्शिता नहीं मिल पाई थी.
यूरोप का सोना कहां रखा है और क्यों बढ़ रही है गोल्ड की मांग?
हालांकि यह सटीक जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि यूरोपीय संघ के देशों का कितना सोना अमेरिका या लंदन में रखा गया है, लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक, जर्मनी का लगभग आधा सोना न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक की 80 फीट गहरी तिजोरी में है, जो मैनहट्टन की चट्टानों के नीचे स्थित है.
सोने की बढ़ती मांग के पीछे दो बड़ी वजहें मानी जा रही हैं:
* बढ़ती महंगाई (Inflation): दुनिया भर में महंगाई बढ़ने के कारण, केंद्रीय बैंक अपनी मुद्राओं के मूल्य को स्थिर रखने और महंगाई के प्रभावों से निपटने के लिए सोने को एक सुरक्षित निवेश के रूप में देख रहे हैं.
* अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अस्थिरता: यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव, मध्य पूर्व में बढ़ती अस्थिरता और अमेरिका में राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी भू-राजनीतिक घटनाओं ने वैश्विक अनिश्चितता को बढ़ाया है. ऐसे समय में, सोना एक स्थिर संपत्ति के रूप में अपनी भूमिका निभाता है.
यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ECB) की रिपोर्ट भी बताती है कि गोल्ड अब यूरो से भी ज़्यादा बड़ा फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व एसेट बन चुका है, जो यूरोपीय देशों की आर्थिक रणनीति में सोने के बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है.
यह स्थिति वैश्विक वित्तीय प्रणाली में एक संभावित बड़े बदलाव का संकेत देती है, जहां देश अपनी संपत्ति की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर अधिक सतर्क हो रहे हैं.