दिल्ली-एनसीआर में पहली बार क्लाउड सीडिंग से कृत्रिम बारिश की तैयारी, जानिए प्रक्रिया, रसायन, लागत, फायदे-नुकसान और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
"अब बादल भी इंसान के इशारे पर बरसेंगे"

Raipur, Chhattisgarh – क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें बादलों में विशेष रसायनों को छोड़ा जाता है ताकि उनमें संघनन (condensation) की प्रक्रिया तेज हो और बारिश हो सके। यह तकनीक प्राकृतिक वर्षा को कृत्रिम रूप से प्रेरित करती है।

प्रक्रिया कैसे होती है
- बादलों की पहचान: सबसे पहले मौसम विभाग द्वारा ऐसे बादलों की पहचान की जाती है जो बारिश के लिए उपयुक्त हों, जैसे निम्बोस्ट्रेटस बादल।
- उड़ान और उपकरण: विशेष विमानों या रॉकेटों से बादलों में रसायन छोड़े जाते हैं। दिल्ली में Khekra और Burari क्षेत्र में फ्लेयर तकनीक से परीक्षण हुआ।
- रसायन का छिड़काव: बादलों में निम्नलिखित रसायन डाले जाते हैं:
- Silver Iodide (AgI)
- Potassium Iodide (KI)
- Dry Ice (ठोस CO₂)
- Liquid Propane या Sodium Chloride (नमक)
- संघनन और वर्षा: ये रसायन बादलों में बर्फ के कणों की तरह व्यवहार करते हैं, जिससे जलवाष्प संघनित होकर बूंदों में बदलता है और वर्षा होती है।
आवश्यकताएं क्या होती हैं
- कम से कम 50% बादल आच्छादन (Cloud Cover)
- निम्बोस्ट्रेटस जैसे भारी बादल
- उपयुक्त तापमान और आर्द्रता
- उड़ान के लिए सुरक्षित मौसम
- तकनीकी विशेषज्ञ और उपकरणों की उपलब्धता
दिल्ली में 28 से 30 अक्टूबर के बीच बादलों की उपस्थिति की संभावना है। यदि मौसम अनुकूल रहा, तो 29 अक्टूबर को पहली कृत्रिम बारिश हो सकती है।
लागत कितनी आती है?
- एक क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन की अनुमानित लागत ₹10 लाख से ₹15 लाख प्रति उड़ान होती है।
- यदि बड़े पैमाने पर किया जाए तो यह खर्च ₹1 करोड़ से ₹5 करोड़ तक जा सकता है।
- दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर की निगरानी में यह प्रयोग किया है।
कौन-कौन से देश करते हैं इसका इस्तेमाल
| देश | उद्देश्य |
|---|---|
| चीन | ओलंपिक जैसे आयोजनों में मौसम नियंत्रण |
| अमेरिका | सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वर्षा लाने हेतु |
| यूएई | रेगिस्तानी इलाकों में जल संकट से निपटने के लिए |
| रूस | बर्फबारी और प्रदूषण नियंत्रण के लिए |
| भारत | महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, दिल्ली में प्रयोगात्मक स्तर पर |
प्राकृतिक वर्षा और कृत्रिम वर्षा में अंतर
| पहलू | प्राकृतिक वर्षा | कृत्रिम वर्षा (Cloud Seeding) |
|---|---|---|
| प्रक्रिया | वाष्पीकरण, संघनन और वर्षा | बादलों में रसायन डालकर संघनन को प्रेरित करना |
| नियंत्रण | प्रकृति पर निर्भर | मानव द्वारा नियंत्रित |
| समय | मौसम पर निर्भर | अनुकूल मौसम में तय समय पर संभव |
| लागत | शून्य | उच्च लागत, तकनीकी संसाधन आवश्यक |
फायदे
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत
- वायु प्रदूषण में कमी
- कृषि के लिए सहायक
- जलाशयों में जल स्तर बढ़ाना
नुकसान
- रसायनों का पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव अज्ञात
- अत्यधिक वर्षा से बाढ़ की आशंका
- उच्च लागत और सीमित सफलता दर
- बादलों की उपस्थिति पर निर्भरता
निष्कर्ष
क्लाउड सीडिंग एक उभरती हुई तकनीक है जो जल संकट और प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दों से निपटने में सहायक हो सकती है। दिल्ली में 29 अक्टूबर को पहली कृत्रिम बारिश की संभावना है, जो वायु गुणवत्ता सुधारने में मददगार हो सकती है। हालांकि, इसके लिए वैज्ञानिक समझ, मौसम की अनुकूलता और भारी निवेश की आवश्यकता होती है।



