मृत लोगों की आवाज़ों से संवाद: AI तकनीक से भावनात्मक राहत या मानसिक भ्रम; विशेषज्ञों ने जताई गंभीर चिंता

‘Creepy AI’ नामक सॉफ्टवेयर मृत लोगों की आवाज़ की नकल कर उनसे बातचीत का अनुभव देता है। जहां कुछ लोग इसे भावनात्मक जुड़ाव का जरिया मान रहे हैं, वहीं मनोवैज्ञानिक इसे मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बता रहे हैं।




20 अगस्त 2025 : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब इंसानी जीवन के इतने करीब पहुंच चुका है कि वह मृत लोगों की आवाज़ को भी डिजिटल रूप से जीवित कर सकता है। हाल ही में सामने आए एक AI टूल “Creepy AI” ने तकनीक की इस सीमा को पार कर दिया है। यह सॉफ्टवेयर मृत रिश्तेदारों या करीबियों की आवाज़ की हूबहू नकल कर उनसे बातचीत का अनुभव देता है। हालांकि यह संवाद वास्तविक नहीं होता, बल्कि मशीन द्वारा तैयार किया गया एक भ्रम होता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह टूल मृत व्यक्ति के पुराने बातचीत पैटर्न, हाव-भाव और आवाज़ के टोन को पहचानकर उसी अंदाज़ में प्रतिक्रिया करता है। शुरुआती दौर में इस तकनीक को लेकर लोगों में उत्साह देखा गया। कई यूज़र्स ने बताया कि उन्हें अपने प्रियजनों से जुड़ाव का एहसास हुआ और वे रोज़ उनसे सलाह-मशविरा करने लगे।

भावनात्मक राहत या मानसिक भ्रम

मनोवैज्ञानिकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस तकनीक को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि लंबे समय तक ऐसी तकनीक का इस्तेमाल लोगों को वास्तविकता से काट सकता है। धीरे-धीरे वे असली दुनिया की बजाय काल्पनिक रिश्तों में जीने लगते हैं, जो मानसिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक शोक की प्रक्रिया को बाधित कर सकती है। आमतौर पर जब कोई अपना गुज़र जाता है, तो व्यक्ति धीरे-धीरे उस क्षति को स्वीकार करता है। लेकिन यदि उसे रोज़ उस व्यक्ति की आवाज़ सुनने और बातचीत करने का भ्रम दिया जाए, तो वह उस स्वीकृति की प्रक्रिया से दूर हो सकता है।

प्राइवेसी का खतरा भी बड़ा

इस तकनीक से जुड़ा एक और बड़ा मुद्दा है—डेटा सुरक्षा। जब लोग अपने मृत परिजनों की जानकारी AI को सौंपते हैं, तो वह डेटा कंपनी के पास स्टोर होता है। यह जानकारी बेहद संवेदनशील हो सकती है और इसके दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है।

कंपनी का पक्ष और विशेषज्ञों की चेतावनी

“Creepy AI” बनाने वाली कंपनी का कहना है कि उनका उद्देश्य लोगों को अपने खोए हुए प्रियजनों से भावनात्मक रूप से जुड़ने का अवसर देना है। लेकिन विशेषज्ञ इसे भावनाओं का शोषण मानते हैं। उनका कहना है कि यह तकनीक जितनी आकर्षक और सुकून देने वाली लगती है, उतनी ही डरावनी और खतरनाक भी साबित हो सकती है।

क्या कहती है रिसर्च

ThePrint की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे AI टूल्स को “Ghostbots” कहा जा रहा है, जो मृत लोगों के डिजिटल अवतार बनाकर उनसे संवाद करवाते हैं। लेकिन यह तकनीक भ्रम, तनाव और अवसाद को बढ़ा सकती है।


निष्कर्ष

AI की यह नई दिशा तकनीकी रूप से भले ही चमत्कारी लगे, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह एक गंभीर चुनौती है। लोगों को इसे सिर्फ एक तकनीकी प्रयोग मानकर सीमित रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, वरना यह असल ज़िंदगी से दूरी बढ़ाने का कारण बन सकती है।

Richa Sahay

ऋचा सहाय — पत्रकारिता और न्याय जगत की एक सशक्त आवाज़, जिनका अनुभव दोनों क्षेत्रों में अद्वितीय है। वर्तमान में The 4th Pillar की वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप में कार्यरत ऋचा सहाय दशकों से राजनीति, समाज, खेल, व्यापार और क्राइम जैसी विविध विषयों पर बेबाक, तथ्यपूर्ण और संवेदनशील लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनकी लेखनी की सबसे खास बात है – जटिल मुद्दों को सरल, सुबोध भाषा में इस तरह प्रस्तुत करना कि पाठक हर पहलू को सहजता से समझ सकें।पत्रकारिता के साथ-साथ ऋचा सहाय एक प्रतिष्ठित वकील भी हैं। LLB और MA Political Science की डिग्री के साथ, उन्होंने क्राइम मामलों में गहरी न्यायिक समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण स्थापित किया है। उनके अनुभव की गहराई न केवल अदालतों की बहसों में दिखाई देती है, बल्कि पत्रकारिता में उनके दृष्टिकोण को भी प्रभावशाली बनाती है।दोनों क्षेत्रों में वर्षों की तपस्या और सेवा ने ऋचा सहाय को एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया है जो ज्ञान, निडरता और संवेदनशीलता का प्रेरक संगम है।

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