आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा करने से प्राप्त होती है भगवान विष्णु और लक्ष्मी की कृपा, जाने विधि और महत्व

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हिंदू धर्म में साल भर में कई पर्व मनाए जाते हैं, उन्हीं में शुमार आंवला नवमी का पर्व आज मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार,आंवला नवमी का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की विधि-विधान से पूजा करने और इस वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व खाने से उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। इस दिन पूजा, जप, दान, सेवा और भक्ति जैसे शुभ कार्य करने से कई जन्मों तक इसके पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

आंवले के वृक्ष की पूजा से भगवान विष्णु और लक्ष्मी होते हैं प्रसन्ना

आंवले के वृक्ष की पूजा करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में आरोग्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली का आगमन होता है. चलिए जानते हैं आंवला नवमी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किस विधि से पूजा करनी चाहिए और इस पर्व का क्या महत्व है.

इस विधि से करें पूजा

मान्यता है कि आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और भगवान शिव का वास होता है. इस दिन विधिवत आंवले के वृक्ष की पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है।

  • सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष पर जल और दूध अर्पित करें।
  • दूध और जल अर्पित करने से बाद उस पर सिंदूर, हल्दी-चावल, फूल आदि अर्पित करें।
  • अब आंवले के वृक्ष की धूप-दीप इत्यादि से पूजन करें, फिर पेड़ की सात बार परिक्रमा करें।
  • फिर घर पर बनें विभिन्न प्रसादों को भोग अर्पित करके आंवले के वृक्ष को प्रणाम करें।
  • भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का ध्यान करें, फिर आंवला नवमी की कथा पढ़ें या सुने।
  • पूजन के बाद परिवार सहित आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें.
  • अगर वृक्ष के नीचे भोजन न कर पाएं तो पूजन के बाद आंवला जरूर खाएं.
  • आंवला पूजन से पहले और बाद में आंवला वृक्ष के नीचे साफ-सफाई करें.

आंवला नवमी की कथा

 

आंवला नवमी से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं और धरती पर आने के बाद उन्हें भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई, फिर मां लक्ष्मी को याद आया कि भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी और भगवान शिव के प्रिय बेल के गुण आंवले में पाए जाते हैं. इसके बाद मां लक्ष्मी ने भगवान शिव और विष्णु की एक साथ पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूजा की. मां लक्ष्मी के पूजन से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए. पूजन के बाद मां लक्ष्मी ने वृक्ष के नीचे भोजन बनाया और श्रीहरि व शिवजी को भोजन कराया, फिर स्वयं भोजन किया. तब से आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाने लगी.

आंवला नवमी का महत्व

कहा जाता है कि आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और माता लक्ष्मी की घर-परिवार पर कृपा बनी रहती है. पद्म पुराण के अनुसार, आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु स्वरूप है और इसके स्मरण मात्र से गोदान का फल मिलता है. इसे स्पर्श करने पर दोगुना और इसके सेवन से तीन गुना फल मिलता है. जो व्यक्ति इस वृक्ष का रोपण करता है उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. हालांकि रविवार, शुक्रवार, संक्रांति, प्रतिपदा, षष्टी, नवमी और अमावस्या के दिन इसका सेवन करने से बचना चाहिए.

Richa Sahay

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