विश्व क्षय दिवस : टीबी की जांच के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगाई जाएगी ट्रूनॉट मशीन

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रायपुर । टीबी (तपेदिक) की वजह से होने वाले स्वास्थ्गत, सामाजिक एवं आर्थिक दुष्परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने हर वर्ष 24 मार्च को विश्व क्षय दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार वर्ष 2025 तक देश से टीबी की बीमारी को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। छत्तीसगढ़ भी वर्ष 2023 तक प्रदेश से टीबी के खात्मे के लिए कार्ययोजना पर काम कर रहा है। पूरी दुनिया में इस साल विश्व क्षय दिवस ‘द क्लॉक इज टिकिंग’ (The Clock is Ticking – घड़ी चल रही है) की थीम पर मनाया जा रहा है।

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पिछले एक वर्ष में टीबी की रोकथाम के लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधाएं आई हैं। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2020 में 29 हजार 358 टीबी के मरीजों की पहचान की गई है। जो 2019 की तुलना में 30 प्रतिशत कम है। कोविड-19 की वजह से सेहत की प्राथमिकताओं के बदलने और संसाधन सीमित होने के बावजूद प्रदेश में टीबी के मरीजों की पहचान और उन्हें इलाज उपलब्ध कराने की हर स्तर पर कोशिश की जा रही है। टीबी के मरीजों की पहचान के लिए इस साल (2021 में) जनवरी और फरवरी माह में उच्च जोखिम समूहों के बीच प्रदेशव्यापी अभियान संचालित किया गया है। इस दौरान 189 नए मरीजों की पहचान कर उनका इलाज शुरू किया गया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अभियान के दूसरे चरण में टीबी के ज्यादा मरीजों की संभावना वाले विकासखंडों में घर-घर जाकर पीड़ितों की जानकारी ली जाएगी।

टीबी की जांच के लिए प्रदेश भर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में चरणबद्ध ढंग से ट्रूनॉट मशीनों की स्थापना की जाएगी। वर्तमान में ट्रूनॉट मशीन से स्वाब सैंपलों की जांच कर कोरोना संक्रमण की पहचान की जा रही है। इसके लिए अनेक जगहों पर ट्रूनॉट मशीन लगाए गए हैं। भविष्य में ये मशीनें टीबी की जांच में भी काफी उपयोगी होंगी। सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इन मशीनों की स्थापना से लोगों को स्थानीय स्तर पर टीबी की जांच की सुविधा मिलेगी। इससे टीबी के मरीजों की पहचान और इलाज में तेजी आएगी। टीबी की जांच को आसान बनाने के लिए हर जिले में वांलिटियर्स (Volunteers) नामांकित किए गए हैं। ये वांलिटियर्स संदिग्ध मरीजों के सैंपल एकत्र कर जांच के लिए लैब तक पहुंचाएंगे।

ऐसे लोग जो उपचार के बाद टीबी से पूर्णतः मुक्त हो गए हैं, टीबी पीड़ितों के इलाज में उनकी सहायता ली जा रही है। “टी.बी. मितान“ के रूप में इन्हें पहचान और जरूरी प्रशिक्षण देकर टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के साथ ही उपचाररत मरीजों की काउंसिलिंग व उन्हें सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सर्पोर्ट प्रदान करने में मदद ली जा रही है। इससे मरीजों के ठीक होने की दर सुधर रही है।

रायपुर में संचालित आईआरएल (इंटरमिडिएट रेफरेंस लैब) वर्तमान में शासकीय क्षेत्र की एकमात्र प्रयोगशाला है जहां टीबी की पहचान के लिए एलपीए और कल्चर जैसी एडवांस जांच तथा डीआर-टीबी के उपचार की सुविधा है। रायगढ़ के शासकीय मेडिकल कॉलेज और एम्स रायपुर में भी इस तरह के एडवांस लैब की स्थापना की जा रही है। टीबी उन्मूलन में निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाने के लिए प्रदेश के छह जिलों में पीपीएसए (Patient Provider Support Agency) नामांकित की जा रही है। इसके माध्यम से निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज करा रहे मरीजों को आवश्यक मार्गदर्शन और उनकी जरूरतों के मुताबिक इलाज उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया जाएगा।

टीबी मरीजों की शीघ्र पहचान के लिए हर स्तर पर कार्यरत प्रदेश के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित और सेन्सिटाइज (Sensitise) किया जा रहा है जिससे कि रोगियों की पहचान कर तत्काल लैब में रिफर किया जा सके। राज्य में पंजीकृत सभी टीबी मरीजों को क्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान प्रति माह 500 रूपए की राशि डीबीटी के माध्यम से दिए जाने हेतु उनके बैंक खातों को लिंक करने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। टीबी निदान कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए हर स्तर पर उनकी नियमित मॉनिटरिंग और मूल्यांकन किया जा रहा है। टीबी से मुक्ति के लिए उठाए जा रहे इन विविध कदमों से उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश ’’टीबीमुक्त छत्तीसगढ़’’ के लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर होगा और 2023 तक हम हमारे प्रदेश को ’’टीबीमुक्त छत्तीसगढ़’’ बनाने में कामयाब हो पाएंगे।

Richa Sahay

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