सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति से समाज में विकास के साथ होगी शांति स्थापित :अनुसुईया उइके 

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रायपुर । सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के लिए तेरापंथ के परमआचार्य महाश्रमण का अहिंसा यात्रा निश्चित ही समाज में शांति और सद्भाव स्थापित करने के दिशा में सार्थक होगी। इससे लोग सामाजिक कुरीतियों से दूर होकर प्रदेश के विकास के लिए सहभागी होंगे। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने उक्त बातें आज आज जैन स्वावलंबियों द्वारा जैनम मानस भवन, नवा रायपुर में आयोजित मर्यादा महोत्सव में कही। उइके ने कहा कि भारत ही साधु-संतों और महात्माओं का देश रहा है। यहां की भूमि में आचार्य महाश्रमण जी के पदार्पण से छत्तीसगढ़ गौरवान्वित हुआ है। उन्होंने कहा कि मैं साधु-संतो और महापुरूषों की बताए हुए रास्तों पर चलकर दिन-दुखियों और प्रदेशवासियों के सेवा के लिए तत्पर रहने का संकल्प ली। उल्लेखनीय है कि 157वां मर्यादा महोत्सव के अवसर पर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण के प्रथम नगर आगमन पर मंगल प्रवेश समारोह का आयोजन किया गया था। उइके ने कहा कि आचार्य महाश्रमण जैन धर्म के श्वेताम्बर तेरापंथ शाखा के संत हैं। महाश्रमण इस यात्रा के माध्यम से पूरे मानव समाज को सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति का संदेश दे रहे हैं। मैं कामना करती हूं कि वे जिस पवित्र उद्देश्य को लेकर यात्रा कर रहे हैं, उसमें वे अवश्य सफल होंगे। हमारा छत्तीसगढ़ भी साधु-संतों, महात्माओं का प्रदेश रहा है। इस परम्परा का निर्वाह सदियों से होता रहा है। जब-जब समाज में किसी प्रकार का संकट आया, संतों ने सहीं रास्ता दिखाया।

राज्यपाल उइके ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के लिए आचार्य महाश्रमण द्वारा तीन देशों नेपाल, भूटान सहित भारत के 23 राज्यों में किए गए लगभग 50 हजार किलोमीटर की अहिंसा यात्रा की सराहना की। उन्होंने छत्तीसगढ़ के जंगलों व जटिल रास्तों कोंटा, दंतेवाड़ा, गीदम, जगदलपुर, कोंडागांव, केशकाल और धमतरी होते हुए राजधानी रायपुर में आयोजित मर्यादा महोत्सव में पदार्पण पर अभिनंदन किया। उइके ने कहा कि आचार्य महाश्रमण का जीवन त्याग की प्रतिमूर्ति है। वे सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार करते हुए सहनशीलता की सीख देते हैं। बुराई छोड़ो, नशा छोड़ो, भ्रूण हत्या मत करो, भेदभाव मत करो, लोक-जीवन में शुद्धता आए, राष्ट्रीय चरित्र बने- इन्हीं उपक्रमों एवं कार्यक्रमों को लेकर वे सुबह से शाम तक गांव हो या शहर आम जनों से मिलते हैं, उन्हें संदेश देते हैं, एक-एक व्यक्ति को समझाते हैं। इस प्रकार आचार्य जी समाज का निर्माण और उत्थान करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं, उनका यह जीवन समाज के लिए एक रोशनी है। राज्यपाल उइके ने इस मौके पर जैन समाज द्वारा संचालित निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का भी अवलोकन कर आयोजन समिति की प्रशंसा की।

मर्यादा महोत्सव में मंगल प्रवेश समारोह को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव धर्म का एक आदर्श स्वरूप है, जो अच्छाईयों के प्रति आस्था और बुराईयों के प्रति संघर्ष करने का साहस देता है। महाश्रमण ने कहा कि इस महोत्सव में यह निहितार्थ है कि मर्यादाओं को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। मर्यादा का मतलब वह आस्था है जो जीवन के ऊंचे आदर्श, शुद्ध नीतियों और किए गए संकल्पों के प्रति जागरूक रखती है। आचार्य ने कहा कि मर्यादाओं को मर्यादा उत्सव का उपहार और उसे अपने जीवन के साथ जोड़कर मर्यादा की राह पर चले। आचार्य महाश्रमण जी ने कहा कि सभी प्राणियों को अपने समान समझो, जो स्वयं के लिए प्रतिकूल व्यवहार है, वैसा व्यवहार दूसरों के लिए ना करें। हमेशा दूसरे को शांति पहुंचाने का काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अहिंसा, संयंम और तप धर्म जीवन में है। हमें अहिंसा को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। इंद्रियों पर नियंत्रण कर जीवन में तप करें, दूसरों की सेवा करना भी तप के समान है। उन्होंने उपस्थित सज्जनों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प दिलाया।

मर्यादा महोत्सव में प्रमुख मुनि महावीरमुनि, असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी, साध्वी नियोजिका विश्रुतविभाजी, साध्वी वर्या संबुद्ध यशाजी, हाईकोर्ट के न्यायधीश गौतम चौड़रिया, संसदीय सचिव रेखचंद जैन, मर्यादा महोत्सव समिति के अध्यक्ष महेन्द्र धाड़ीवाल, महासचिव नरेन्द्र दुग्गड़, कोषाध्यक्ष मोतीलाल बैद सहित बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी उपस्थित थे।

Richa Sahay

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