न्याय खुद चल पड़ा पक्षकारों के द्वार, रायपुर जिले में रिकॉर्ड एक ही दिन में 8352 मामलों का निराकरण

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रायपुर । पीड़ितों को न्याय देने के लिए न्यायालय द्वारा पहली बार मोबाइल लोक अदालत वैन आयोजन किया गया। जहां न्याय खुद ही पक्षकारों के द्वार चल पड़ा। वहीं, इस नेशनल लोक अदालत रायपुर जिले में एक ही दिन में रिकार्ड 8,352 मामलों का निराकरण किया। यह पहला मौका है, जब प्रदेश के किसी जिले में एक ही दिन में इतनी बड़ी संख्या में मामलों का निराकरण हुआ हो। पूरे प्रदेश में कुल 15 हजार के लगभग मामलों का निराकरण हुआ है, जिसमें लगभग एक तिहाई मामलों का निराकरण सिर्फ रायपुर में हुआ है।

इस नेशनल लोक अदालत में रायपुर जिला न्यायालय में कुल 8352 प्रकरणों का निराकरण हुआ, जिसमें 4176 न्यायालय के लंबित प्रकरण है।4176 प्रीलिटिगेशन प्रकरण है। इस लोक अदालत में कुल 15808 मामलों को सुनवाई के लिए रखा गया था, जिसमें 47 खंडपीठों द्वारा सुनवाई की गई।

वैन के माध्यम से पक्षकारों तक पहुंचकर मामलों का निराकरण

रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं महासमुंद द्वारा जिला न्यायालय में लंबित सात प्रकरणों को मोबाइल लोक अदालत वैन के माध्यम से पक्षकारों के घर पहुंचकर प्रकरणों को आपसी सुलह समझौते द्वारा निराकरण किया गया। इन मामलों में दो प्रकरण दिव्यांग व्यक्तियों के जो जिला न्यायालय महासमुंद जिले के संबंधित थे, एक व्यक्ति जिला चिकित्सालय में भर्ती था, दो व्यक्ति बीमार होने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे थे।

दो व्यक्ति वृद्ध होने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे थे, जिनके प्रकरणों के निराकरण के लिए मोबाइल लोक अदालत वैन उनके पास तक पहुंची और प्रकरणों का निराकरण की कार्रवाई पूर्ण की गई। वहीं लगभग एक हजार मामले कोरोना काल में उल्लंघन से संबंधित धारा 188 के हैं, जो शासन की पहल पर वापस लिए गए हैं। लोक अदालत प्रकरणों का निराकरण पक्षकारों की भौतिक और वर्चुअल उपस्थिति में किया गया।

ऐसे मिला इन लोगों को न्याय

रोड एक्सीडेंट के एक मामले में 78 वर्ष के बुजुर्ग पक्षकार, अली असगर अजीज को न्यायालय आने में परेशानी थी। उनके घुटनों का ऑपरेशन हुआ था, जिस कारण वे चलने-फिरने में असमर्थ थे और बुजुर्ग होने के कारण वे मोबाइल का उपयोग भी नहीं कर पाते थे। उनकी परेशानी को देखते हुए प्राधिकरण ने दो पैरा वालिंटियर्स को उनके पास भेजा और उन पैरालीगल वालिंटियर्स ने, रायपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भूपेंद्र कुमार वासनीकर की खंडपीठ में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से निशक्त पक्षकार अली असगर को उपस्थित कराया।

न्यायालय द्वारा वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से ही अली असगर को समझाइश दी गई और राजीनामा के संबंध में चर्चा की गई। इसी तरह चेक बाउंस के एक अन्य मामले में पक्षकार राजवंत सिंह एक दुर्घटना का शिकार हो गए और उनकी पसलियां टूट गई। वर्तमान में वे चलने-फिरने में असमर्थ हैं। राजवंत सिंह भी अपने मामले में राजीनामा कर मामले को खत्म करना चाहते थे, लेकिन अपने स्वास्थगत कारणों से वे न्यायालय आने में असमर्थ थे।

राजवंत सिंह विरोधी पक्षकार को लिए गए उधार के एवज में चेक, न्यायालय के सामने देना चाहते थे। जब यह बात प्राधिकरण को पता चली, तो प्राधिकरण ने पैरा वालिंटियर्स को वाहन सहित उनके घर भेजा और उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें न्यायालय लेकर आ गए और डॉ. सुमित सोनी के न्यायालय में उन्होंने चेक प्रदान किया और राजीनामा के माध्यम से यह मामला भी खत्म हुआ।

40 वर्ष पुराने मामले का निराकरण

भूमि संबंधी विवाद को लेकर रामदुलार चौधरी के पिता शिबोधी चौधरी द्वारा वर्ष 1980 में शिवमंगल सिंह के विरूद्ध माननीय व्यवहार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। मामला यह था कि शिबोधी चौधरी ने वर्ष 1975 में भूमि क्रय की थी उसी भूमि को शिवमंगल सिंह द्वारा क्रय कर उस पर नामांतरण कराकर काबिज हुआ। उनके मध्य भूमि के स्वत्व एवं कब्जा संबंधी व्यवहारवाद संचालित हुआ। उक्त व्यवहारवाद के लंबनकाल में उभय पक्ष शिबोधी चौधरी एवं शिवमंगल सिंह की मृत्यु भी हो गई, उसके बाद उनके उत्तराधिकारीगण प्रकरण में पक्षकार बनकर प्रकरण संचालित किए।

इस मध्य प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भी लंबित रहा, उक्त मामला माननीय व्यवहार न्यायालय के समक्ष 35 वर्षों तक संचालित रहा और वर्ष 2015 में व्यवहार न्यायालय के क्षरा प्रकरण का निराकरण स्व. शिबोधी चौधरी के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके विरूद्ध स्व. शिवमंगल सिंह के उत्तराधिकारियों द्वारा वरिष्ठ न्यायालय माननीय पंचम अपर जिला न्यायाधीश अंबिकापुर के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। उक्त अपील के निराकरण के लिए उभय पक्षों के मध्य समझौता की बातचीत हुई, जिसमें संबंधित न्यायालय द्वारा उभय पक्षों को समझाइश दी गई।

अंततः मामला उभय पक्षों के द्वारा संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी ओम प्रकाश जायसवाल की समझाइश और आपसी बातचीत कर समझौता के आधार पर अपील का निराकरण नेशनल लोक अदालत के माध्यम से छह वर्षों के बाद हो गया। उक्त समझौता प्रकरण 40 वर्ष पुराना होने के कारण संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के समझाईश एवं सहयोग से हुआ, जिसमें उभय पक्ष के अधिवक्ता विकास श्रीवास्तव और उदयराज तिवारी ने भी सहयोग दिया।

शारीरिक दूरी का पालन

नेशनल लोक अदालत में भीड़ अधिक होने के कारण यहां शारीरिक दूरी का पालन नहीं सका। इसके अलावा वाहन पार्किंग की समस्या आ गई। लोग जहां-तहां अपने वाहनों का पार्क कर रहे थे। इस दौरान ट्रैफिक पुलिस के जवानों ने लोगों को सीधे मल्टीलेवल पार्किंग भेजा।

Richa Sahay

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