जानिए क्यों भाईदूज पर होती है चित्रगुप्त महाराज की आराधना, ये है पूजा विधि और धार्मिक महत्व

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दीपावली के पर्व के बाद हर साल भाईदूज मनाई जाती है। इन दिन महाराज चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस तिथि को महाराज चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। इस दिन ही भाई-बहनों का प्रमुख त्योहार भाईदूज भी मनाया जाता है। सनातन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाराज चित्रगुप्त को हर मनुष्य के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है और भाईदूज के दिन महाराज चित्रगुप्त की लेखनी की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

चित्रगुप्तजी का इतिहास

कैसे पड़ा नाम

भगवान को चित्रगुप्त के नाम से पहचाने जाने के पीछे भी पुराणों में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। एक कथा में बताया गया है कि महाप्रलय के पश्चात् सृष्टि की पुर्नरचना की जानी थी। भगवान ब्रह्मा तपस्या में लीन थे। करीब हजारों वर्षों की तपस्या के दौरान उनके स्मृति पटल पर एक चित्र अंकित हुआ और गुप्त हो गया। भगवान के मुख से निकल पड़ा चित्रगुप्त कायस्थ। अर्थात जो चित्र गुप्त हो और मन में स्थित हो। इसके पश्चात् जब उनकी तंद्रा टूटी तो सामने दीव्यपुरूष खडे़ थे। इन्हें ही चित्रगुप्त नाम दिया गया। ब्रह्मा जी ने दीव्यपुरूष को महाकाल नगरी में जाकर तपस्या करने को कहा। ये दीव्य पुरूष उज्जैन आए और घोर तप किया। जिसके प्रभाव से सृष्टि के प्रत्येक प्राणि के कर्मों का लेखा – जोखा रखने की शक्ति चित्रगुप्त को प्राप्त हो पाई। इन्होंने मानव कल्याण के लिए शक्तियाँ अर्जित कीं।

भगवान का विशेष पूजन

चित्रगुप्त भगवान का पूजन विशेषतौर पर कार्तिक शुक्ल द्वितीया व चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की द्वितीया को किया जाता है। दीपावली के पश्चात् द्वितीया तिथि पर मनाई जाने वाली भाईदूज पर भी इनका महत्व होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन धर्मराज अपनी बहन से मिलने उसके घर पहुँचते हैं।

जानिए कौन है महाराज चित्रगुप्त

सनातन धर्म में मान्यता है कि परमपिता परमेश्वर ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त महाराज को उत्पन्न किया था। ब्रह्मा जी की काया से महाराज चित्रगुप्त की उत्पत्ति हुई थी, इसी कारण उन्हें कायस्थ भी कहते हैं। चित्रगुप्त जी का विवाह भगवान सूर्य की पुत्री यमी से हुआ था, इसलिए वह यमराज के बहनोई हैं। यमराज और यमी सूर्य की जुड़वा संतान हैं। यमी बाद में यमुना हो गई और धरती पर आ गई।

चित्रगुप्त पूजा मुहूर्त 2020 में

इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 16 नवंबर 2020 को सुबह 7:06 बजे से होगा, जो 17 नवंबर को अल-सुबह 3:56 बजे तक रहेगा। ऐसे में यदि आप महाराज चित्रगुप्त का अर्चन करना चाहते हैं तो उनकी पूजा 16 नवंबर को करें। साथ ही इन दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6:45 से दोपहर 02:37 तक रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 1:53 बजे से दोपहर 02:36 तक रहेगा। अभिजित मुहूर्त दिन में 11:44 बजे से दोपहर 12:27 बजे तक है। इस दौरान भी आप महाराज चित्रगुप्त की पूजा कर सकते हैं।

महाराज चित्रगुप्त की पूजा करने की संपूर्ण विधि इस प्रकार है –

भाई दूज के दिन अच्छी तरह से स्नान के बाद पूर्व दिशा में बैठकर एक चौक बनाएं। वहां पर चित्रगुप्त महाराज की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा करें। इसके बाद पुष्प, अक्षत्, धूप, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। चूंकी महाराज चित्रगुप्त लेखा-जोखा रखने वाले देवता है, इसलिए एक नई लेखनी या पेन उनको जरूर अर्पित करें। साथ ही कलम-दवात की भी पूजा करना चाहिए। इसके बाद कोरे सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः लिखें। इसके बाद चित्रगुप्त महाराज का नमन कर आर्शीवाद लें।

महाराज चित्रगुप्त का प्रार्थना मंत्र

मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम्।

लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।

ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः मंत्र का भी जाप कर सकते हैं। पूजा-अर्चना के दौरान भी चित्रगुप्त प्रार्थना मंत्र का जाप करते रहें। चूंकि चित्रगुप्त पूजा के दिन बहन के हाथों भोजन ग्रहण करने का भी धार्मिक महत्व है। ऐसा करने से भाई दीर्घायु होते हैं। इसी कारण विवाहित बहनें भी भाईदूज के दिन अपने भाई-भाभी को विशेष तौर पर खाने के लिए आमंत्रित करती है और विशेष पकवान खिलाती है।

Richa Sahay

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