ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ धाम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है। श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है। इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका खुलासा इंजीनियरिंग में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी आज तक नहीं कर पाए। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ होने के इस शुभ अवसर पर आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के बारे में बेहद ही रोचक जानकारी देने जा रहे हैं। ये तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है लेकिन ये अधूरी क्यों है, इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।
आइए जानते हैं मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अधूरा होने के पीछे का रहस्य क्या है?
इस वजह से आज भी अधूरी हैं भगवान की मूर्तियां
मान्यताओं के मुताबिक मालवा नरेश इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार सपने में उन्हें स्वयं श्री हरि ने दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें दारु (लकड़ी) का एक लट्ठा मिलेगा। उस लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति का निर्माण कराओ। राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें वहां लकड़ी का लट्ठा मिल गया। अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाई जाए। कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए।
मूर्तिकार ने मूर्ति बनाने के लिए राजा के सामने रखी थी ये शर्त
उन्होंनें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें ।लेकिन उस कारीगर के रूप में आए बूढ़े ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी। मूर्तिकार ने कहा कि वे मूर्ति बनाने का कार्य बंद कमरे में करेंगे और यदि कमरा खुला तो वह मूर्ति बनाने के काम को बीच में ही छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने मूर्तिकार की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया। लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरूर आता था। महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज नहीं आ रही थी। जिसके बाद राजा को जिज्ञासा हुई और उससे रहा नहीं गया।
इस वजह से अधूरी है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
राजा कमरे के अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं। वास्तव में वह बूढ़ा मूर्तिकार स्वयं विश्वकर्मा जी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां बनाने धरती पर आए थे। राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यही दैव की मर्जी है। तब उसी अवस्था में मूर्तियां स्थापित की गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं।