बस्तर की अरण्यक संस्कृति पुरातात्विक वैभव की संगिनी

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जगदलपुर। बस्तर के पुरातात्विक वैभव पर जिला पुरातत्व संग्रहालय में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के पहले दिन रविवार को 14 वक्ताओं ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। वक्ताओं ने बस्तर के पुरातात्विक संपदा के मामले में संपन्नाता पर खुशी जाहिर करते यहां की अरण्यक संस्कृति को पुरातात्विक वैभव की संगिनी बताया। साथ ही यहां प्राचीन टीलों में दफन बस्तर के प्राचीन एवं पुरातात्विक इतिहास को सामने लाने की जरूरत बताई। शेष पढ़ें विज्ञापन के बाद….

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संगोष्ठी में सोमवार को भी एक दर्जन से अधिक शोध पत्र पढ़े जाएंगे। संगोष्ठी का उद्घाटन पद्मश्री धर्मपाल सैनी के मुख्य आतिथ्य एवं वरिष्ठ कलाधर्मी बंशीलाल विश्वकर्मा की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में किया गया।

समारोह के विशिष्ट अतिथि डा. आनंदजी सिंह थे। मुख्य अतिथि धर्मपाल सैनी ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि बस्तर में राजसत्ता के साथ जनजाति वैभव का एक साथ अध्ययन होना चाहिए। पोर्ट ब्लेयर के बाद बस्तर का संग्रहालय पूरा वैभव की दृष्टि से देश में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

बस्तर के पुरातत्व वैभव पर अब तक बाहरी दुनिया की रोशनी नहीं पड़ी है। बस्तर की अरण्यक संस्कृति को बचाना जरूरी है क्योंकि यह इस क्षेत्र के पुरातात्विक वैभव की संगिनी है। पुरातत्व धरोहर हमारा अतीत है। जब हम हजारों साल पुरानी पुरातन संपदा के सामने खड़े होते हैं तो हम उस काल में जीते हैं और अपने पूर्वजों का सानिध्य महसूस करते हैं। उन्होंने जगदलपुर के गोल बाजार के ऐतिहासिक झंडाचौरा के नीचे रखे गए गांधीजी के भस्म कलश स्थल को संरक्षित कर संवर्धित करने की मांग भी रखी।

बंशीलाल विश्वकर्मा ने कहा कि बस्तर को पिछड़ा क्षेत्र कहा जाता है परंतु यह भू-भाग पुरातन संपदा और संस्कृति से समृद्ध रहा और आज भी है। मूर्तियों की चोरी होती रही हैं इसलिए पुरातत्व संपदा को बचाने हमें पंच- सरपंचों की मदद लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के पीछे पड़ी मूर्तियां कहां गई? इसकी जांच होनी चाहिए। शिक्षाविद बीएल झा ने कहा कि दलपत सागर मध्य शिवालय लगभग 500 साल पुराना है। उक्त उपेक्षित मंदिर का संरक्षण व संवर्धन जरूरी है।

उन्होंने बस्तर से गुम हो चुकी मूर्तियों की जानकारी देते हुए इनकी खोज व संरक्षण की बात दोहराई। उन्होंने जिला पुरातत्व संग्रहालय में दूसरे संग्रहालयों की तरह लाइट एंड साउंड सिस्टम व्यवस्था की मांग उठाई। इसके पूर्व उप संचालक एवं सग्रहालयाध्यक्ष एके पैकरा ने संगोष्ठी के आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।

नई पीढ़ी को जागरूक करने की जरूरत

विशिष्ट अतिथि डा. आनंदजी सिंह ने कहा नई पीढ़ी पुरातन संपदा व धरोहर के प्रति जागरूकता दिखाए। तभी ऐसे शोध संगोष्ठी के आयोजन की सार्थकता है। नई पीढ़ी को ऐसे विषयों को लेकर जागरूक करने की जरूरत है। डा मुक्ति बैस रायपुर ने पुरातात्विक संपदा के संरक्षण हेतु तथा नई पीढ़ी तक धरोहर से जुड़ी बातें पहुंचाने के लिए शोध संगोष्ठी की तारीफ की।

पुरातत्ववेत्ता एसके तिवारी ने कहा बस्तर हमारे लिए पुरातात्विक वरदान है। भारत में बस्तर ही ऐसा वनांचल है। जहां बसाहट कम होने के कारण वनों में पुरानी मूर्तियां और स्थल सुरक्षित हैं। गुप्तकाल का 150 से अधिक पुरातात्विक अवशेष बस्तर में हैं, परंतु इनका प्रचार प्रसार नहीं हो पाया है। डा. आनंद मूर्ति मिश्रा ने कहा शोध संगोष्ठी शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। पुरातत्व स्थल व वैभव स्थानीय रहवासियों और जनजातियों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। पहले सत्र में शोध संगोष्ठी के समीक्षक डा आनंदमूर्ति मिश्र और रूद्रनारायण पाणिग्रही थे। कार्यक्रम का संचालन अफजल अली और ज्वाएस लारेंस सिंह ने किया।

91 वर्षीय वक्ताओं के संबोधन में खूब बजी तालियां

वरिष्ठजनों को सुनकर विभोर हुए श्रोतासंगोष्ठी में 96 वर्षीय डा बीएल झा, 91 वर्षीय धर्मपाल सैनी और 91 वर्षीय बंशीलाल विश्वकर्मा के संबोधन के दौरान श्रोताओं के बीच से लगातार तालियां बजती रही। इन्हें सुनकर श्रोता विभोर थे। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में ओमप्रकाश सोनी गीदम ने बस्तर के अल्पज्ञात प्राचीन मंदिर, घनश्याम सिंह नाग बहीगांव ने केशकाल का पुरातात्विक वैभव, सुश्री सुमन साहू ने बस्तर में जैन मूर्ति शिल्प व अंबिका की प्रतिमाएं, विक्रम कुमार सोनी ने बस्तर के दुर्ग, हेमंत कश्यप ने बस्तर में 100 से अधिक उमा महेश्वर की प्रतिमाएं व धारालिंग, डा स्वप्न कुमार कोले ने भतरा जनजाति के भौतिक संस्कृति तथा उसमें परिवर्तन, आशारानी पटनायक ने केसरपाल व रामपाल का पुरातन मंदिर, सुश्री भेन रायपुर ने आमाझाला राक आर्ट इन्वेस्टिगेशन, ढालसिंह देवांगन ने बस्तर के शिल्प कला में बड़े डोंगर की प्रतिमाओं का पुरातात्विक अध्ययन, डा. मुक्ति बैस रायपुर ने बस्तर का पुरातात्विक वैभव, डा. आनंद जी सिंह दंतेवाड़ा ने नागफनी का नाग मंदिर, शैलबाला दुबे ने छग के बस्तर का पुरातात्विक वैभव, दीनदयाल साहू ने बस्तर का पुरातत्व वैभव, प्रज्ञा तिवारी शैव धर्म में महाशिवरात्रि पर्व आपसी सद्भावना का प्रतीक पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

Richa Sahay

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