कानपुर में रावण का मंदिर जहां साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं कपाट, विजयादशमी पर होती है पूजा
उत्तर प्रदेश के कानपुर में स्थित दशानन रावण का मंदिर अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहां रावण को शक्ति और ज्ञान के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और मंदिर के द्वार केवल दशहरे के दिन ही भक्तों के लिए खोले जाते हैं।


रायपुर, 2 अक्टूबर 2025: जब पूरा देश विजयादशमी पर रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मना रहा होता है, तब उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है।
यहां के शिवाला क्षेत्र में स्थित दशानन रावण मंदिर में रावण की पूजा की जाती है, और यह मंदिर साल में केवल एक दिन, विजयादशमी पर ही खुलता है।
यह मंदिर लगभग 158 वर्ष पुराना है और इसे महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने स्थापित किया था। मंदिर परिसर में रावण की पांच फीट ऊंची प्रतिमा प्रहरी के रूप में स्थापित है, जिसे संवत 1868 में मां छिन्नमस्तिका के मंदिर के साथ बनाया गया था।
मंदिर में दर्शन की परंपरा
विजयादशमी के दिन सुबह 6 बजे से रात 8:30 बजे तक मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। इस दिन हजारों श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और रावण की प्रतिमा के सामने सरसों के तेल के दीपक जलाते हैं।
महिलाएं वैवाहिक सुख की कामना के लिए तोरई के फूल चढ़ाती हैं। सुबह रावण का जन्मोत्सव मनाया जाता है और रात को भगवान राम द्वारा मोक्ष प्राप्ति की कथा सुनाई जाती है।
पुजारी और भक्तों की मान्यता
मंदिर के पुजारी चंदन मौर्य के अनुसार, रावण केवल एक राक्षस नहीं था, बल्कि वह एक प्रकांड पंडित और भगवान शिव का परम भक्त था। उसकी पूजा शक्ति और ज्ञान के प्रतीक के रूप में की जाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां छिन्नमस्तिका ने रावण को वरदान दिया था कि उसकी पूजा तभी सफल होगी जब भक्त उसकी भी आराधना करेंगे।
एक स्थानीय भक्त राजिंदर गुप्ता ने बताया कि रावण को नहीं, बल्कि उसके पुतले को जलाया जाता है क्योंकि उसने अपने ज्ञान और शक्ति का दुरुपयोग किया था।
वह अहंकारी हो गया था और यही उसकी विनाश का कारण बना। लेकिन उसकी विद्वता और भक्ति को नकारा नहीं जा सकता।
सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश
यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी देता है कि अच्छाई और बुराई का मूल्यांकन केवल प्रतीकों से नहीं, बल्कि कर्मों से होना चाहिए।
रावण की पूजा इस बात का प्रतीक है कि ज्ञान और शक्ति का सम्मान किया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप में हो।
निष्कर्ष:
कानपुर का दशानन रावण मंदिर भारत की विविध धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण है। जहां एक ओर रावण को बुराई का प्रतीक मानकर उसका दहन किया जाता है, वहीं दूसरी ओर उसकी विद्वता और भक्ति के लिए पूजा भी की जाती है। यह मंदिर हर साल विजयादशमी पर श्रद्धालुओं को आत्ममंथन का अवसर देता है।