26 जून, 2025: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने एक बार फिर जोर देकर कहा है कि संविधान देश में सर्वोच्च है, न कि संसद। उन्होंने यह बात अमरावती में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में दोहराई, जहां उन्होंने लोकतंत्र के तीनों अंगों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – के संविधान के अधीन होने के सिद्धांत पर प्रकाश डाला। यह पहली बार नहीं है जब न्यायमूर्ति गवई ने इस महत्वपूर्ण संवैधानिक सिद्धांत को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने स्पष्ट किया कि, जबकि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, वह इसकी “मूल संरचना” को नहीं बदल सकती है। उन्होंने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) ऐतिहासिक मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने “मूल संरचना सिद्धांत” को स्थापित किया था।
इस सिद्धांत के अनुसार, संविधान के कुछ मूलभूत पहलू ऐसे हैं जिन्हें संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे संविधान की पहचान और प्रकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संसद के साधारण बहुमत से बदला न जा सके।
उन्होंने न्यायाधीशों के कर्तव्य पर भी बात की, यह कहते हुए कि न्यायाधीशों के लिए संविधान में एक कर्तव्य निर्धारित किया गया है और केवल सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने से कोई स्वतंत्र नहीं बन जाता है।
यह टिप्पणी न्यायिक स्वतंत्रता की जटिल प्रकृति और न्यायाधीशों की संवैधानिक बाध्यताओं को रेखांकित करती है, जिसमें बिना किसी पक्षपात के कानून के शासन को बनाए रखना शामिल है।
संविधान की सर्वोच्चता का महत्व
संविधान की सर्वोच्चता का सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी अंग चाहे वह विधायिका हो, कार्यपालिका हो, या न्यायपालिका हो, असीमित शक्ति का प्रयोग न कर सके। यह प्रणाली शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) और नियंत्रण एवं संतुलन (Checks and Balances) पर आधारित है, जो मनमानी शक्ति को रोकने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में मदद करती है।
* विधायिका (संसद): कानून बनाती है, लेकिन ये कानून संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होने चाहिए। यदि कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता है, तो न्यायपालिका उसे रद्द कर सकती है।
* कार्यपालिका (सरकार): कानूनों को लागू करती है, लेकिन इसे भी संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर कार्य करना होता है।
* न्यायपालिका (अदालतें): कानूनों की व्याख्या करती है और यह सुनिश्चित करती है कि विधायिका और कार्यपालिका दोनों संविधान के अनुसार कार्य करें।
न्यायमूर्ति गवई की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब विभिन्न लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों को लेकर बहस चल रही है। उनकी यह बात भारतीय संविधान की मजबूत नींव और देश के संवैधानिक मूल्यों के प्रति सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराती है।
यह संदेश आम जनता और विशेष रूप से कानून के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है, जो भारतीय संवैधानिक ढांचे को समझने और उसके मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।