पितृ पक्ष: आज सप्तमी श्राद्ध का विशेष महत्व, जानें श्राद्ध, तर्पण और उनके नियमों से जुड़ी हर बात


Raipur, 13 सितंबर 2025 – हमारे सनातन धर्म में पितृ पक्ष का अत्यधिक महत्व है। यह 16 दिनों की वह अवधि है, जब हम श्रद्धा और सम्मान के साथ अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। इन दिनों में किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर सूक्ष्म रूप में अपने वंशजों के घर आते हैं, ताकि वे श्राद्ध-तर्पण के माध्यम से अपनी तृप्ति सुनिश्चित कर सकें।
आज की तिथि: पितृ पक्ष का सातवां दिन
आज, पितृ पक्ष के सातवें दिन, यानी सप्तमी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यह दिन उन सभी दिवंगत आत्माओं के लिए समर्पित है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की सप्तमी तिथि को हुई थी। इस दिन विधि-विधान से श्राद्ध और तर्पण करने पर पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
जल तर्पण की विधि: सरल और सटीक
जल तर्पण पितरों को जल अर्पित करने की एक क्रिया है। इसे सही विधि से करना अत्यंत आवश्यक है।
- तैयारी: सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहननी चाहिए। वस्त्र सफेद या हल्के रंग के होने चाहिए। एक तांबे के लोटे में स्वच्छ जल लें और उसमें काला तिल, जौ तथा गंगाजल मिलाएँ। तर्पण करने के लिए कुशा का प्रयोग अनिवार्य है। एक कुशा को अपनी अनामिका (रिंग फिंगर) उंगली में अंगूठी की तरह धारण करें।
- तर्पण का तरीका: दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें या खड़े हों। अपने गोत्र का नाम लेते हुए पितरों का आह्वान करें। लोटे से अंजलि बनाकर, धीरे-धीरे जल को धरती पर गिराएँ।
तर्पण के लिए सही दिशा, उंगली और मंत्र
यह जानना महत्वपूर्ण है कि किसके लिए किस दिशा में और किस तरीके से तर्पण किया जाता है।
श्रेणी | तर्पण की दिशा | जल गिराने की विधि | मंत्र और संख्या |
---|---|---|---|
पितृ | दक्षिण दिशा | अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच (इसे पितृ तीर्थ कहते हैं) | ‘गोत्रे अमुक शर्मणः (पूर्वज का नाम) तर्पयामि’ मंत्र का तीन बार उच्चारण करें। |
देवतागण | पूर्व दिशा | उंगलियों के अग्रभाग (इसे देवांगुलि तीर्थ कहते हैं) | ‘ॐ देवा देवाय नमः’ मंत्र का एक बार उच्चारण करें। |
ऋषि मुनि | उत्तर दिशा | कनिष्ठा (छोटी) उंगली के नीचे या हथेली के बगल से (इसे काय तीर्थ कहते हैं) | ‘ॐ ऋषिभ्यो नमः’ मंत्र का दो बार उच्चारण करें। |
- कुशा की अंगूठी (पवित्री) को हमेशा अनामिका उंगली में ही धारण करें, चाहे आप किसी भी श्रेणी के लिए तर्पण कर रहे हों।
जल तर्पण से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण नियम
- तर्पण का सबसे उत्तम समय: शास्त्रों के अनुसार, जल तर्पण का सबसे अच्छा समय दोपहर 12 बजे से 1 बजे के बीच का होता है, जिसे अपरान्ह काल कहते हैं। यदि इस समय तर्पण संभव न हो, तो सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले किसी भी समय किया जा सकता है।
- कौन करे तर्पण : तर्पण करने का मुख्य अधिकार परिवार के पुरुष सदस्यों को होता है।
- क्या महिलाएं तर्पण कर सकती हैं : पारंपरिक रूप से महिलाओं को तर्पण करने की अनुमति नहीं दी जाती है। हालांकि, यदि परिवार में कोई पुरुष सदस्य न हो, तो धर्म शास्त्रों में ऐसी स्थिति में महिलाएं भी तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं। यह अपने पितरों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक तरीका है।
- यदि मृत्यु तिथि ज्ञात न हो : अगर किसी व्यक्ति को अपने पूर्वज की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनका श्राद्ध और तर्पण पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन किया जा सकता है। इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं, जो सभी अज्ञात और अपूर्ण श्राद्धों के लिए होती है।
पितृ पक्ष में क्या करें और क्या न करें
- क्या करें:
- सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को भोजन कराएं।
- दान-पुण्य का कार्य करें।
- पितरों के निमित्त भागवत गीता या रामायण का पाठ करें।
- क्या न करें:
- मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- कोई भी शुभ कार्य, जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि न करें।
- नए वस्त्र न खरीदें और बाल न कटवाएं।
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