छत्तीसगढ़ में ‘महंगी बिजली’ का करंट: कोयला बहुल राज्य में दर वृद्धि और कटौती का दोहरा संकट
छत्तीसगढ़ में 'डबल झटका': कोरबा की कोयला संपन्नता के बावजूद महंगी बिजली और अघोषित कटौती से जनता त्रस्त। 2025-26 में बिजली दरों में 1.89% की वृद्धि और लगातार बिजली कटौती ने घरेलू, व्यावसायिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को किया परेशान; कोरबा जैसे ऊर्जा हब में भी बिजली संकट पर सवाल।


रायपुर, 11 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़, जिसे देश का ऊर्जा हब कहा जाता है, इस समय बिजली संकट के दोहरे दबाव में है। एक ओर बिजली दरों में लगातार वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर मेंटेनेंस के नाम पर घंटों की अघोषित बिजली कटौती ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
कोरबा जैसे कोयला बहुल जिले में भी बिजली की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, जिससे राज्य सरकार की ऊर्जा नीति पर सवाल उठने लगे हैं।
बिजली दरों में लगातार वृद्धि: उपभोक्ताओं पर बढ़ता बोझ
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग (CSERC) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में बिजली दरों में औसतन 8.35% की वृद्धि की थी। अब 2025-26 में दरों में फिर 1.89% की बढ़ोतरी की गई है।
- घरेलू उपभोक्ता: पहले ₹3.75 प्रति यूनिट की दर अब ₹3.90 के आसपास पहुंच गई है। फिक्स्ड चार्ज और मीटर रेंट में भी वृद्धि हुई है।
- व्यावसायिक उपभोक्ता: दरें ₹6.50 से बढ़कर ₹6.75 प्रति यूनिट तक पहुंच गई हैं।
- किसान और स्टील उद्योग: किसानों की दरें यथावत रखी गई हैं, जबकि स्टील उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए दरों में कटौती की गई है।
सरकार का कहना है कि यह वृद्धि ऊर्जा सुधारों और भविष्य की मांगों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। लेकिन जनता इसे वित्तीय बोझ मान रही है, खासकर तब जब सेवा गुणवत्ता में गिरावट आई है।
दर वृद्धि का मुख्य कारण:
सरकारी विभागों का बकाया: विभाग घाटे में होने का एक बड़ा कारण राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, निगमों और निकायों पर बिजली बिलों का ₹1700 करोड़ से अधिक का भारी बकाया होना भी है, जिसकी वसूली नहीं हो पा रही है।
बिजली कटौती: मेंटेनेंस या प्रशासनिक अक्षमता
राज्य के कई हिस्सों में अघोषित बिजली कटौती आम हो गई है।
- मुख्य कारण: पुरानी ट्रांसमिशन लाइनें, ओवरलोड ट्रांसफार्मर और तकनीकी खामियां।
- सरकारी योजनाएं: कोरबा में 1320 मेगावाट का नया प्लांट प्रस्तावित है, लेकिन मौजूदा ग्रिड की मरम्मत के लिए बार-बार कटौती की जा रही है।
- सूचना की कमी: उपभोक्ताओं को कटौती की पूर्व सूचना नहीं दी जाती, जिससे असुविधा बढ़ती है।
- बिजली मांग: राज्य में बिजली की मांग हर वर्ष लगभग 10% बढ़ रही है, जिससे आपूर्ति पर दबाव है।
कोरबा का विरोधाभास: ऊर्जा हब में बिजली संकट क्यों
कोरबा को देश का ऊर्जा केंद्र माना जाता है, जहां कोयले की भरपूर उपलब्धता और ताप विद्युत संयंत्र हैं।
- बावजूद इसके: राज्य बिजली सरप्लस होने के बावजूद दरें बढ़ रही हैं।
- विशेषज्ञों की राय: दर वृद्धि का कारण कोयले की कमी नहीं, बल्कि ₹1700 करोड़ से अधिक का सरकारी बकाया, ट्रांसमिशन लॉस और सब्सिडी का भार है।
- AT&C लॉस: तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान का भार अंततः उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है।
- जनता की नाराजगी: लोग मानते हैं कि प्रशासनिक पारदर्शिता और दक्षता की कमी के कारण उन्हें महंगी बिजली और खराब सेवा मिल रही है।
उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया: हर वर्ग परेशान
उपभोक्ता वर्ग | प्रमुख नुकसान | प्रतिक्रिया |
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घरेलू उपभोक्ता | मासिक बिल में वृद्धि, उपकरणों की क्षति, इन्वर्टर/जनरेटर पर अतिरिक्त खर्च | सोशल मीडिया पर नाराजगी, सरकार की आलोचना |
व्यावसायिक वर्ग | उत्पादन लागत में वृद्धि, व्यापार में रुकावट, मशीनरी को नुकसान | पारदर्शिता की मांग, विरोध प्रदर्शन |
किसान वर्ग | दरें स्थिर लेकिन सिंचाई के समय कटौती से फसल पर असर | निर्बाध बिजली आपूर्ति की मांग |
पूर्ववर्ती सरकार की ‘हाफ बिजली बिल’ योजना की सीमा को 400 यूनिट से घटाकर 100 यूनिट करने से मध्यमवर्गीय परिवारों पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ा है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है।
निष्कर्ष: ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार की जरूरत
छत्तीसगढ़ में बिजली दरों में वृद्धि और अघोषित कटौती ने सरकार की ऊर्जा नीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कोरबा जैसे ऊर्जा समृद्ध जिले में भी बिजली संकट होना प्रशासनिक और तकनीकी अक्षमता को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा सुधारों के समर्थन की बात के बावजूद, जनता को उम्मीद है कि सरकार पारदर्शिता बढ़ाएगी, बकाया वसूली को प्राथमिकता देगी और दीर्घकालिक जनहितैषी रणनीति अपनाएगी।