Tuesday, July 15, 2025
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बगैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में नए सत्र में प्रवेश पर रोक,उच्च न्यायालय की खंडपीठ का कड़ा रुख

रायपुर । छत्तीसगढ़ के शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा न्यायिक हस्तक्षेप सामने आया है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल शामिल हैं, ने निःशुल्क बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बगैर मान्यता प्राप्त गैर-शासकीय शालाओं में नए सत्र में छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दी है।

न्यायालय ने क्यों दिया यह निर्देश?

विकास तिवारी द्वारा दायर हस्तक्षेप याचिका के आधार पर खंडपीठ ने यह गंभीर संज्ञान लिया कि प्रदेश में कई गैर-शासकीय स्कूल बिना वैधानिक मान्यता के संचालन कर रहे हैं। न्यायालय ने शिक्षा विभाग के सचिव को आदेशित किया है कि वे आगामी सुनवाई से पहले व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करें जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि क्यों 2013 में लागू विनियमों के बावजूद अभी तक नर्सरी से केजी 2 तक की कक्षाएं संचालित करने वाली शालाएं बिना मान्यता के चल रही हैं।

लोक शिक्षण विभाग की स्थिति और स्पष्टीकरण

संचालक, लोक शिक्षण विभाग ने 11 जुलाई को न्यायालय में शपथपत्र प्रस्तुत कर बताया कि:केवल कक्षा पहली से ऊपर की शालाओं को मान्यता लेना अनिवार्य है। नर्सरी से केजी 2 तक की कक्षाओं वाली शालाओं पर अनिवार्यता नहीं है।

72 शालाएं केवल नर्सरी से केजी 2 तक 1391 शालाएं प्राथमिक स्तर तक 3114 पूर्व-माध्यमिक और 2618 उच्चतर माध्यमिक स्तर तक की हैं।

हालांकि, शिक्षा विभाग ने यह भी स्वीकार किया कि जिन शालाओं को मान्यता लेना आवश्यक है और वे ऐसा नहीं कर रही हैं, उनके खिलाफ जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा आर्थिक दंड लगाया जा रहा है तथा मान्यता के लिए प्रस्तुत आवेदन लंबित हैं।

अधिवक्ताओं का विरोध और कानूनी पक्ष

हस्तक्षेपकर्ता विकास तिवारी के अधिवक्ता संदीप दुबे एवं मानस वाजपेयी ने विभागीय स्पष्टीकरण का विरोध करते हुए न्यायालय को यह बताया कि 7 जनवरी 2013 को शासन द्वारा लागू विनियम के अनुसार नर्सरी से केजी 2 तक की कक्षाएं संचालित करने वाली सभी गैर-शासकीय शालाओं को भी मान्यता लेना अनिवार्य है।

बच्चों के भविष्य और अभिभावकों को आर्थिक नुकसान

खंडपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि बिना मान्यता वाली शालाओं में छात्रों को प्रवेश देना बच्चों के भविष्य के साथ जोखिम है और अभिभावकों को आर्थिक क्षति का कारण बनता है। अतः न्यायालय ने निर्देश दिया कि आगामी आदेश तक किसी भी गैर-मान्यता प्राप्त शाला में नया प्रवेश नहीं दिया जाए।

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