
केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए ट्रांसजेंडर जोड़े जिया और ज़हद को उनकी बेटी के जन्म प्रमाण पत्र में ‘माता’ और ‘पिता’ की बजाय ‘अभिभावक’ के रूप में दर्ज करने की अनुमति दी है।

जस्टिस ज़ियाद रहमान की अध्यक्षता वाली केरल हाईकोर्ट की बेंच ने इस फैसले को एक मील का पत्थर बताया, जो ट्रांसजेंडर अधिकारों और समावेशी समाज की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब कोझिकोड नगर निगम ने जन्म प्रमाण पत्र में पारंपरिक ‘माता-पिता’ की पहचान को बनाए रखने की सिफारिश की थी। इसे चुनौती देते हुए दंपति ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहां उन्हें न्याय मिला।
क्यों ऐतिहासिक है यह फैसला?
यह निर्णय कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- ट्रांसजेंडर दंपति को परिवार के रूप में कानूनी मान्यता
- यह पहली बार है जब किसी ट्रांसजेंडर जोड़े को संगठित परिवार इकाई के रूप में विधिक अधिकार प्रदान किया गया है।
गोद लेने के अधिकार को मजबूती
- इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदाय के बच्चों को गोद लेने के अधिकार को और सशक्त किया गया है।
क्या कहती है न्यायपालिका?
केरल की प्रथम ट्रांसजेंडर वकील पद्मा लक्ष्मी ने इसे समाज में समानता की दिशा में बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा,अब अन्य ट्रांसजेंडर जोड़ों को अपने परिवार स्थापित करने में कोई बाधा नहीं होगी। यह फैसला हमें गर्व और आत्मसम्मान के साथ जीने का अवसर देगा।
कोर्ट ने क्या आदेश दिया?
न्यायालय ने कोझिकोड नगर निगम को आदेश दिया कि वे दो महीने के भीतर संशोधित जन्म प्रमाण पत्र जारी करें, जिसमें माता-पिता की बजाय ‘अभिभावक’ दर्ज किया जाए।
समुदाय में खुशी की लहर
ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय को क्रांतिकारी बताया। केरल की ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट शीतल श्याम ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा, ट्रांसजेंडर समुदाय को परिवार के रूप में स्वीकार करना समाज में नई दिशा देगा। यह उन जोड़ों को प्रेरित करेगा जो बच्चे गोद लेने की इच्छा रखते हैं।
वहीं, ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता अक्काई पद्माशाली, जिन्हें कर्नाटक सरकार के सर्वोच्च राज्योत्सव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, ने कहा,यह फैसला ट्रांसजेंडर जोड़ों के लिए उम्मीद की किरण है। इससे हमारी कानूनी पहचान को मजबूती मिलेगी और समानता का मार्ग प्रशस्त होगा।