Sunday, April 20, 2025
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शोध : दिल की धड़कनें रुकने के बाद भी चलता रहता है दिमाग़, जानिए मौत के करीब होने वाले अनुभव

नर्वस सिस्टम का अध्ययन करने वाली वैज्ञानिक जिमो बोरजीगिन को जब इस बात का एहसास हुआ कि मरते वक़्त दिमाग़ में क्या हो रहा होता है तो वे हैरान हो गईं.

मौत जीवन का अंत है इसके बावजूद इस बारे में हमारा ज्ञान बहुत सीमित है. बोरजीगिन को मौत के वक़्त दिमाग की हालत का एहसास लगभग एक दशक पहले पूरी तरह संयोग से हुआ था.

उन्होंने बीबीसी की स्पेनिश भाषा की सेवा को बताया, “हम चूहों पर एक्सपेरिमेंट कर रहे थे और सर्जरी के बाद उनके दिमाग में होने वाले केमिकल बदलावों की जांच कर रहे थे”.

लेकिन अचानक, उनमें से दो चूहों की मौत हो गई. इससे उन्हें दिमाग के मरने की प्रक्रिया के दौरान दिमाग में होने वाले बदलावों को जानने का मौका मिला.

उन चूहों में से एक में सेरोटोनिन नाम के केमिकल की बहुत ज़्यादा मात्रा निकली. इससे उन्होंने सोचा कि क्या उस चूहे को दिमाग का भ्रम हो रहा था ?

उन्होंने बताया, “सेरोटोनिन दिमाग के भ्रम से जुड़ा हुआ है”. मूड को कंट्रोल करने वाले सेरोटोनिन केमिकल को देखकर उनमें और अधिक जानने की जिज्ञासा पैदा हुई.

उन्होंने बताया, “इसलिए मैंने हफ्ते के आख़िर में इसके बारे में किताबों में ढूंढना शुरू कर दिया. यह सोचकर कि इसके पीछे कोई उचित वजह तो होनी चाहिए. मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि हम मरने की प्रक्रिया के बारे में इतना कम जानते हैं”.

डॉ बोरजीगिन, अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में शरीर और दिमाग की बनावट के बारे में पढ़ाती है. तब से उन्होंने अपना काम इस बात को जानने के लिए केंद्रित कर रखा है कि जब हम मर रहे होते हैं, तो उस वक्त दिमाग में क्या होता है ? उनका कहना है कि उन्होंने जो पाया वह उनकी सोच से उलट है.

मौत की परिभाषा

वह बताती हैं कि लंबे समय तक कार्डियक अरेस्ट (दिल की धड़कन का बंद होना) के बाद अगर किसी व्यक्ति की नाड़ी नहीं चलती थी, तो उसे मरा हुआ माना जाता था.

इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से हृदय पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. इसे “कार्डियक अरेस्ट” कहते हैं, लेकिन इसमें दिमाग के रुकने के बारे में कुछ नहीं बताया जाता.

वह कहती हैं, “वैज्ञानिक समझ यह है कि ऐसा लगता है कि दिमाग काम नहीं कर रहा है, क्योंकि वह इंसान कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है. वह न तो बोल सकता है, न खड़ा हो सकता है, न बैठ सकता है”.

दिमाग को काम करने के लिए बहुत ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है. अगर हृदय खून को पंप नहीं करता, तो ऑक्सीजन उस तक नहीं पहुंच पाती.

वह बताती हैं, “इसलिए सभी संकेत यही बताते हैं कि दिमाग अब काम नहीं कर रहा है. इसके अलावा, या तो वह कम से कम बहुत निष्क्रिय है, ज़्यादा एक्टिव नहीं है”.

हालांकि उनकी टीम की रिसर्च कुछ अलग ही बात बताती है.

दिमाग का बहुत ज़्यादा एक्टिव होना

2013 में चूहों पर किए गए एक अध्ययन में, रिसर्चर्स ने चूहों के दिल की धड़कन बंद होने के बाद दिमाग के कई केमिकल में तेज़ गतिविधि को देखा.

उन्होंने पाया कि सेरोटोनिन 60 गुना बढ़ गया है और डोपामाइन तो जबरदस्त तरह से 40 से 60 गुना बढ़ गया है. वहीं नोरेपाइनफ्राइन तो 100 गुना बढ़ गया है.

डोपामाइन एक ऐसा केमिकल होता है, जो आपको अच्छा महसूस कराता है. वहीं नोरेपाइनफ्राइन आपको बहुत सतर्क महसूस कराता है.

वह कहती है कि जब जानवर जिंदा होता है तो उनमें इस तरह के उच्च स्तर को देखा पाना नामुमकिन होता है.

2015 में, उनकी टीम ने मरते हुए चूहों के दिमाग पर एक और स्टडी को पब्लिश किया.

डॉ बोरजीगिन कहती हैं, “दोनों स्टडी में, 100 प्रतिशत चूहों के दिमाग में बहुत ज़्यादा गतिविधि देखी गई. दिमाग बहुत ज़्यादा काम कर रहा था और बहुत ज़्यादा सक्रिया अवस्था में था”.

गामा वेव्स

2023 में, उन्होंने एक रिसर्च पब्लिश की, जिसमें उन्होंने चार रोगियों का अध्ययन किया जो कोमा में थे और लाइफ सपोर्ट (ज़िंदा रखने के लिए कई प्रकार के मेडिकल तरीके) पर थे.

उन्होंने दिमाग की गतिविधि को स्कैन करने के लिए उनके सिर पर ख़ास तरह के इलेक्ट्रोड (बिजली के सिग्नल भेजने वाला डिवाइस) लगाए.

वे चारों लोग मर रहे थे. जिससे डॉक्टर और परिवार के लोग इस बात पर सहमत हुए कि उनकी मदद करना नामुमकिन है, इसलिए उन्होंने उन्हें मरने देने का फ़ैसला किया. रिश्तेदारों की अनुमति से उन्हें ज़िंदा रखने वाले वेंटिलेटर बंद कर दिए गए.

रिसर्चर्स ने पाया कि उनमें से दो रोगियों के दिमाग बहुत एक्टिव थे. जिससे पता चलता है कि उनका दिमाग अभी भी काम कर रहा था.

उन्हें गामा वेव्स भी देखने को मिली, जो दिमाग की सबसे तेज़ वेव्स होती है. गामा वेव्स कठिन जानकारी और मेमोरी को प्रोसेस करने में मदद करती है.

एक मरीज के दिमाग के दोनों तरफ टेम्पोरल लोब्स में ज़्यादा गतिविधि देखी गई. टेम्पोरल लोब दिमाग का वह हिस्सा होता है, जो आपको अपने आस-पास की दुनिया को समझने के लिए अपने सेंस का इस्तेमाल करने में मदद करता है.

डॉ बोरजीगिन ने बताया कि दिमाग का दाहिना हिस्सा, जिसे टेम्पोरोपैरिएटल जंक्शन कहा जाता है, वह सहानुभूति महसूस करने या दूसरों की भावनाओं को समझने के लिए बहुत अहम है.

वह कहती हैं, “कई मरीज़ जो कार्डियक अरेस्ट से बच जाते हैं और मौत के करीब पहुंच जाते हैं, इससे वे एक बेहतर इंसान बन जाते हैं. इससे वे दूसरों के प्रति ज़्यादा सहानुभूति महसूस करने लगते हैं”.

मौत के करीब होने वाले अनुभव

कुछ लोग जो अपनी मौत के बेहद पास के अनुभव से गुजरे हैं, कहते हैं कि वे अपनी पूरी ज़िंदगी को तेज़ी से अपने सामने दोहराते हुए देख सकते हैं या महत्वपूर्ण क्षणों को याद कर सकते हैं.

कई लोगों का कहना है कि उन्होंने एक चमकदार रोशनी देखी. कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे वे अपने शरीर से बाहर थे और ऊपर से देख रहे थे कि क्या हो रहा है.

क्या डॉ बोरजीगिन ने अपनी स्टडी में जिस बहुत ज़्यादा एक्टिव दिमाग का ज़िक्र किया है, क्या वह यह बता सकता है कि क्यों कुछ लोगों को मौत के करीब आने पर इतने तेज़ अनुभव हुए?

जिसपर वह कहती हैं, “हां मुझे लगता है कि ऐसा ही है”.

कार्डियक अरेस्ट से बचे हुए लगभग 20 से 25 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने एक सफेद रोशनी या कुछ चीज़ देखी, जिससे पता चलता है कि उनकी दिमाग का वह हिस्सा (विजुअल कॉर्टेक्स) अब भी एक्टिव था, जिससे हम देख सकते हैं.

वेंटिलेटर बंद होने के बाद जिन दो रोगियों का दिमाग बहुत ज़्यादा एक्टिव था, उनके मामले में रिसर्चर्स ने पाया कि दृष्टि के लिए जिम्मेदार दिमाग का हिस्सा (विजुअल कॉर्टेक्स) बहुत एक्टिव था.

यह उनके उन अनुभवों से जुड़ा हो सकता है, जैसे कि सफेद प्रकाश देखना.

एक नई समझ

डॉ बोरजीगिन इस बात को मानती है कि इंसानों पर की गई उनकी स्टडी बहुत छोटी है. उन्हें अभी इस बात पर और रिसर्च करने की ज़रूरत है कि जब हम मर रहे होते हैं, तो हमारे दिमाग में क्या होता है.

हालांकि 10 सालों से ज़्यादा के रिसर्च के बाद, डॉ बोरजीगिन एक बात के बारे में आश्वस्त है.

उनका मानना है कि हाइपोएक्टिव (कम सक्रिय) होने के बजाय, कार्डियक अरेस्ट के दौरान दिमाग बहुत एक्टिव होता है.

लेकिन जब दिमाग को पता चलता है कि उसे ऑक्सीजन नहीं मिल रही है तो क्या होता है?

इस पर वह कहती हैं, “हम इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए किताबों में इनके बारे में बहुत कम जानकारी है. वास्तव में इसके बारे में किसी को भी नहीं पता है”.

वह हाइबरनेशन का ज़िक्र करती है. हाइबरनेशन वह अवस्था होती है, जब कोई जानवर एनर्जी बचाने के लिए अपनी हृदय की गति को धीमा कर देता है और ज़्यादा भोजन किए बिना सर्दी में ज़िंदा रहता है.

वह अपने विचार साझा करते हुए कहती हैं कि चूहों और मनुष्यों सहित जानवरों में ऑक्सीजन की कमी को संभालने की एक प्राकृतिक क्षमता होती है.

वह कहती हैं, “अब तक यह माना जाता रहा है कि हृदय की गति रुकने पर दिमाग बेहद लाचार महसूस करता है. जब हृदय रुक जाता है, तो दिमाग भी मर जाता है. अभी भी सोच यही है कि दिमाग इससे निपट नहीं सकता और मर जाता है”.

लेकिन वह जोर देकर कहती हैं कि हम नहीं जानते हैं कि क्या यह सच है. उनका मानना है कि दिमाग आसानी से हार नहीं मानता है. दूसरे संकटों की तरह, यह जिंदा रहने के लिए लड़ता है.

वह कहती हैं, “हाइबरनेशन इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि ऑक्सीजन की कमी होने पर दिमाग किस तरह प्राकृतिक तरीके से ज़िंदा रहता है. लेकिन इस विचार पर अभी और स्टडी की जाने की ज़रूरत है”.

अभी बहुत काम बाकी है

डॉ बोरजीगिन का मानना है कि उन्होंने और उनकी टीम ने अपनी स्टडी में जो कुछ भी पाया है, वह एक बड़ी खोज का एक छोटा सा हिस्सा ही है. इसलिए अभी भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है.

वह कहती हैं, “दिमाग में हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी)” से निपटने के प्राकृतिक तरीके हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पा रहे हैं”.

वह आगे कहती हैं, “ऊपरी तौर से, हम जानते हैं कि जिन लोगों को कार्डियक अरेस्ट होता है, उन्हें अद्भुत, व्यक्तिगत अनुभव होते हैं. हमारा डेटा बताता है कि यह अनुभव दिमाग की गतिविधि के बढ़ने के कारण होता है”.

अब सवाल यह उठता है कि मरते हुए दिमाग की बहुत ज़्यादा एक्टिव क्यों हो जाता है?

इस पर वह कहती हैं, “हमें समझने, स्टडी करने, रिसर्च करने और पता लगाने के लिए एक साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है. अभी हम लाखों लोगों को उनकी मौत के समय से पहले ही मरा हुआ मान लेते हैं, क्योंकि हम पूरी तरह से नहीं समझते हैं कि मरने की प्रक्रिया में क्या होता है”.

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