बेहद रहस्यमयी है महिला नागा साधुओं की दुनिया,केवल इस समय देती है दर्शन

यूपी के प्रयागराज में अगले महीने दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम यानी महाकुंभ शुरू होने वाला है। इस कुंभ में करीब 45 करोड़ लोगों के शामिल होने की संभावना है।

लगभग 2 महीने तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों लोग गंगा-यमुना के संगम में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ हासिल करेंगे। इस महाकुंभ में लोगों को साधु-संतों के अखाड़ों की दिव्यता भी देखने को मिलेंगी। इनमें महिला साधु भी शामिल होंगी, जो केवल कुंभ में ही दुनिया को दर्शन देती है। इसके बाद ये कहां चली जाती हैं, इसके बारे में लोगों को कुछ पता नहीं होता।

लोगों में अक्सर साधु-साधु संतों के बारे में जानने के लिए जिज्ञासा रहती है।लोगों के मन में नागा साधु शब्द सुनकर बिना कपड़े वाले बाबा की तस्वीर बनती है । उसमें भी बात अगर महिला नागा साधु की हो तो मामला और भी दिलचस्प हो जाता है।सवाल ये है कि क्या महिला नागा साधु भी पुरुष नागा साधुओं की तरह बिना वस्त्रों के रहती हैं। उनके नागा साधु बनने की प्रक्रिया क्या होती है। वे कहां रहती हैं। उनका जीवन कैसे चलता है।

कैसे बनती हैं महिला नागा साधु

धार्मिक विद्वानों के मुताबिक शुरुआत में महिला नागा साधुओं की कोई परंपरा नहीं थी और केवल पुरुष नागा साधु ही नजर आते थे। लेकिन अब दुनिया की मोह-माया से विरक्त हो चुकी कई महिला नागा साधु भी कुंभ में बन चुकी हैं। इन महिलाओं के नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी उतनी ही कठोर है, जितनी की पुरुष नागा साधुओं की। इसके लिए उन्हें 12 वर्ष तक कठोर तप यानी परीक्षा से गुजरना पड़ता है।

शुरुआत के 6 साल उन्हें सांसारिक जीवन त्यागने में बिताना पड़ता है। वे केवल भिक्षा मांगकर ही अपना गुजारा करती हैं और दिन में महज एक बार ही भोजन करती हैं। वे चारपाई या बेड पर नहीं सो सकतीं और केवल घास-फूस ही उनका ठिकाना होता है। 6 साल बाद जब वे इस जीवन की अभ्यस्त हो जाती हैं तो फिर वे जीते जी अपना पिंडदान कर सिर मुंडवाती हैं और तर्पण करती हैं। पिंडदान का मतलब है कि महिला अपनी पुरानी पहचान और जीवन से पूरी तरह मुक्त हो जाती है। यह वही प्रक्रिया होती है जो मृत्यु के बाद की जाती है। इसके बाद महिला साधु यह मान लेती हैं कि अब वह एक नई आध्यात्मिक यात्रा पर हैं और उनका जीवन ईश्वर को समर्पित है।

इसके बाद उनके गुरू उन्हें महिला नागा साधु की उपाधि देते हैं। इसके बाद के 6 साल वे अपने शरीर को गर्मी, सर्दी, बरसात हर तरह के मौसम को सहन करने में सक्षम बनाने में लगाती हैं।

क्‍या बिना कपड़ों के रहती हैं महिला नागा साधु

कई लोग सोचते होंगे कि महिला नागा साधु भी पुरुषों की तरह बिना कपड़ों के रहती होंगी लेकिन यह सच नहीं है। असल में वे बिना सिला हुआ गेरुए रंग का वस्त्र पहनती हैं।उन्हें केवल एक ही वस्त्र धारण करने की अनुमति होती है। साथ ही माथे पर तिलक, शरीर पर राख और मोटी जटाएं रखती हैं। महिला नागा साधु को आश्रम में काफी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और बाकी साध्वियां उन्हें माता कहकर पुकारती हैं।

दुनिया को कब देती हैं दर्शन

महिला नागा साधु दुनिया की नजरों से दूर हमेशा भक्ति में लीन रहती हैं और तप करती हैं। उन पर मोह-माया, सुख-दुख का कोई प्रभाव नहीं होता। यही वजह है कि आम लोगों को महिला नागा साधु आम तौर पर दिखाई नहीं देती लेकिन जब कुंभ मेला लगता है तो अपने अखाड़ों के सानिध्य में वे भी पवित्र नदियों के स्नान के लिए पहुंचती हैं।तब लोग पहली बार उनका दर्शन कर पाते हैं। कुंभ के बाद वे फिर से अपने गोपनीय भक्ति जीवन में लौट जाती हैं और दुनिया के लिए लुप्त हो जाती हैं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। The 4th Pillar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

Richa Sahay

ऋचा सहाय — पत्रकारिता और न्याय जगत की एक सशक्त आवाज़, जिनका अनुभव दोनों क्षेत्रों में अद्वितीय है। वर्तमान में The 4th Pillar की वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप में कार्यरत ऋचा सहाय दशकों से राजनीति, समाज, खेल, व्यापार और क्राइम जैसी विविध विषयों पर बेबाक, तथ्यपूर्ण और संवेदनशील लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनकी लेखनी की सबसे खास बात है – जटिल मुद्दों को सरल, सुबोध भाषा में इस तरह प्रस्तुत करना कि पाठक हर पहलू को सहजता से समझ सकें।पत्रकारिता के साथ-साथ ऋचा सहाय एक प्रतिष्ठित वकील भी हैं। LLB और MA Political Science की डिग्री के साथ, उन्होंने क्राइम मामलों में गहरी न्यायिक समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण स्थापित किया है। उनके अनुभव की गहराई न केवल अदालतों की बहसों में दिखाई देती है, बल्कि पत्रकारिता में उनके दृष्टिकोण को भी प्रभावशाली बनाती है।दोनों क्षेत्रों में वर्षों की तपस्या और सेवा ने ऋचा सहाय को एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया है जो ज्ञान, निडरता और संवेदनशीलता का प्रेरक संगम है।

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