बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक रेप पीड़िता को अबॉर्शन की मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने युवती को शुक्रवार को जिला अस्पताल जाकर अबॉर्शन कराने का निर्देश दिया है। साथ ही पुलिस को डीएनए सैंपल सुरक्षित रखने का आदेश भी दिया है।
23 दिसंबर को युवती ने एक याचिका दायर कर अबॉर्शन की अनुमति मांगी थी। गुरुवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से केवल एक पेज की सामान्य मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिस पर न्यायमूर्ति रवींद्र अग्रवाल ने मेडिकल बोर्ड को फटकार लगाई।
डॉक्टरों ने अबॉर्शन करने से कर दिया था मना
पीड़िता रेप के बाद 21-22 सप्ताह की गर्भवती हुई थी, और इस स्थिति से परेशान होकर उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, युवती ने डॉक्टरों से सलाह ली थी, लेकिन उन्होंने इसे मेडिको-लीगल केस बताते हुए अबॉर्शन करने से मना कर दिया था।
न्यायमूर्ति रवींद्र अग्रवाल ने जताई नाराजगी
गुरुवार को जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तो कलेक्टर के निर्देश पर मेडिकल बोर्ड ने ओपीडी पर्ची में रिपोर्ट पेश की और बताया कि युवती का अबॉर्शन किया जा सकता है। इस पर न्यायमूर्ति रवींद्र अग्रवाल ने नाराजगी व्यक्त की और कहा कि मेडिकल परीक्षण में कई जरूरी जांचें, जैसे ब्लड टेस्ट, एचआईवी टेस्ट और सोनोग्राफी, की जानी चाहिए थी।
मेडिकल बोर्ड ने बाद में माफी मांगते हुए विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा। इसके बाद, हाईकोर्ट ने शुक्रवार सुबह 11 बजे युवती को जिला अस्पताल में जाकर अबॉर्शन कराने के लिए निर्देश दिया।
मेडिकल बोर्ड को 26 दिसंबर तक रिपोर्ट पेश करने का था निर्देश
सुनवाई के दौरान, युवती के वकील आशीष तिवारी ने आग्रह किया कि चूंकि युवती रेप पीड़िता है, इसलिए अबॉर्शन से पहले उसका डीएनए परीक्षण भी किया जाए, ताकि आरोपी को सजा दिलाने में मदद मिल सके। इस पर हाईकोर्ट ने तारबाहर थाना प्रभारी को एसपी के माध्यम से डीएनए जांच की प्रक्रिया पूरी कराने का आदेश दिया।
यह सुनवाई शीतकालीन अवकाश के दौरान हुई थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने विशेष कोर्ट का गठन किया था और न्यायमूर्ति रवींद्र अग्रवाल से केस की सुनवाई करवाई। मेडिकल बोर्ड को 26 दिसंबर तक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया था।