हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। इस साल सोमवार 15 नवंबर को तुलसी शालिग्राम विवाह कराया जाएगा।
आइए जानते हैं विवाह की आसान विधि, मुहूर्त और सामग्री
आपके विवाह में अड़चन आ रही है, रिश्ता पक्का नहीं हो रहा है, या शादी बार-बार टूट रही है तो तुलसी विवाह कराने से लाभ मिलेगा। मान्यता है कि जिन दंपत्ति को कन्या सुख नहीं मिलता है, उन्हें जीवन में एक बार तुलसी विवाह कर तुलसी कन्यादान का भी पुण्य मिलता है। इतना ही नहीं, माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए तुलसी विवाह का विशेष महत्व है।
तुलसी विवाह की विधि
- तुलसी विवाह शाम को कराया जाता है। तुलसी के गमले पर गन्ने का मंडप बनाकर तुलसी पर लाल चुनरी, सुहाग सामग्री चढ़ानी चाहिए। इसके बाद गमले में शालिग्रामजी को रखकर रस्में शुरू की जाती हैं। इस दौरान विवाह के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। साथ ही इन बिन्दुओं के आधार पर विवाह कर्म संपन्न कराएं।
- जिनको तुलसी विवाह कराना है, वह स्नान कर साफ कपड़े पहन लें
- जिन लोगों को तुलसी कन्यादान करना है, उन्हें आज व्रत रखना चाहिए
- शुभ मुहूर्त में तुलसी पौधे को आंगन या छत पर चौकी पर स्थापित करें
- एक दूसरी चौकी लें, जिस पर शालिग्राम को स्थापित करें
- चौकी पर अष्टदल कमल बनाकर कलश स्थापित करें
- कलश पर स्वास्तिक बनाएं और ऊपर आम के पांच पत्ते रखें
- एक साफ कपड़े में नारियल लपेटकर कलश के ऊपर रखें
- तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं और समक्ष घी का दीपक जलाएं
- तुलसी के गमले के पास भी रंगोली बनाएं
- तुलसी-शालिग्राम जी पर गंगाजल से छिड़काव करें. ध्यान रखें कि शालिग्राम की चौकी की दाएं तरफ तुलसी का गमला रखें
- तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं
- तुलसी के गमले की मिट्टी पर गन्ने का मंडप बनाएं उस पर सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी चढ़ाएं
- फिर तुलसी गमले को साड़ी लपेटकर चूड़ी पहना कर दुल्हन की तरह श्रृंगार करें
- शालिग्राम जी को पीले वस्त्र पहनाएं, तुलसी-शालिग्राम को हल्दी लगाएं.
- पहले कलश-गणेश जी की पूजा कर कर तुलसी-शालिग्राम को धूप, दीप, फूल, वस्त्र, माला अर्पित करें
- तुलसी मंगाष्टक का पाठ करें और हाथ में आसन समेत शालिग्रामजी को लेकर तुलसीजी की सात बार परिक्रमा करें
- भगवान विष्णु और तुलसी जी की आरती उतार कर भोग लगाएं
तुलसी विवाह मुहूर्त
तुलसी विवाह मुहूर्त 15 नवंबर 2021: दोपहर 1 बजकर 02 मिनट से दोपहर 2 बजकर 44 मिनट तक. 15 नवंबर 2021: शाम 5 बजकर 17 मिनट से 5 बजकर 41 मिनट तक।
तुलसी मंत्र
‘महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते’
इस मंत्र का जाप नियमित रूप से तुलसी पत्ते या पौधे को छूते हुए करना चाहिए।
स्तुति मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
पद्मपुराण के पौराणिक कथा अनुसार राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए थे, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं। इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।
भगवान विष्णु की प्रिय हैं तुलसी
देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं. देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पांचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।
तुलसी विवाह के लिए किए जाते हैं ये कार्य
देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं। शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं।
मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं।
तुलसी विवाह के बाद भोज का आयोजन
विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियां भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है। महिलाएं विवाह के गीत तथा भजन गाती हैं।
कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी के साथ ही शादी-विवाह आदि सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं। इसलिए इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह रचाना उचित भी है। कई स्थानों पर विष्णु जी की सोने की प्रतिमा बनाकर उनके साथ तुलसी का विवाह रचाने की बात कही गई है। विवाह से पूर्व तीन दिन तक पूजा करने का विधान है।
निःसंतान दंपत्ति को जरूर करना चाहिए तुलसी विवाह
शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती। वे एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें। तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हिन्दुओं के संस्कार अनुसार तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है।
तुलसी की नियमित पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है। यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है। तुलसी घर-आंगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है। तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।