RAW का ‘ब्लैक टाइगर’: रवींद्र कौशिक की कहानी जो इतिहास में अमर हो गई
राजस्थान के श्रीगंगानगर से कराची तक, एक थिएटर कलाकार कैसे बना भारत का सबसे बड़ा जासूस। रॉ के लिए काम करते हुए रवींद्र कौशिक ने पाकिस्तान की सेना में घुसपैठ की, हजारों भारतीयों की जान बचाई, लेकिन अंत में पहचान उजागर होने पर जेल में दम तोड़ दिया।

रायपुर, 4 सितंबर 2025: भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के इतिहास में रवींद्र कौशिक का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
एक साधारण थिएटर कलाकार से लेकर पाकिस्तान की सेना में मेजर बनने तक की उनकी यात्रा किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती। कौशिक को ‘ब्लैक टाइगर’ का कोड नेम दिया गया था, जो उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा प्रदान किया गया था।
शुरुआती जीवन और अभिनय से जासूसी तक
रवींद्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। उनके पिता भारतीय वायुसेना में अधिकारी थे।
कॉलेज के दिनों में वे नाटकों और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे। 1972 में लखनऊ के एक यूथ फेस्टिवल में उन्होंने एक भारतीय जासूस की भूमिका निभाई, जिसे देखकर सेना के अधिकारियों ने उन्हें रॉ के लिए उपयुक्त माना।
गुप्त प्रशिक्षण और पाकिस्तान में घुसपैठ
रॉ ने उन्हें दिल्ली में दो वर्षों तक प्रशिक्षित किया। उन्हें इस्लाम धर्म, उर्दू भाषा, पाकिस्तानी संस्कृति और जीवनशैली की गहन जानकारी दी गई।
इसके बाद उन्हें नया नाम मिला, नबी अहमद शाकिर। 1975 में वे पाकिस्तान भेजे गए, जहां उन्होंने कराची यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की और फिर पाकिस्तानी सेना के मिलिट्री अकाउंट्स विभाग में क्लर्क के रूप में भर्ती हो गए।
निजी जीवन और पहचान छिपाने की कला
अपनी पहचान को पूरी तरह छिपाने के लिए रवींद्र ने एक पाकिस्तानी महिला अमानत से शादी की और एक बेटे के पिता बने। उनका पारिवारिक जीवन पूरी तरह पाकिस्तानी नागरिक जैसा था, जिससे उनकी जासूसी गतिविधियों पर कोई संदेह नहीं हुआ।
खुफिया जानकारी और भारत को लाभ
1979 से 1983 तक रवींद्र कौशिक ने पाकिस्तान की सेना और सरकार से जुड़ी कई संवेदनशील जानकारियां भारत भेजीं। इन सूचनाओं की मदद से भारत ने कई आतंकी घटनाओं को रोका और अनुमानतः 20,000 से अधिक नागरिकों की जान बचाई।
विफल मिशन और पहचान का उजागर होना
1983 में रॉ ने एक अन्य एजेंट इनायत मसीह को रवींद्र से संपर्क करने के लिए पाकिस्तान भेजा। लेकिन इनायत की गिरफ्तारी के बाद रवींद्र की पहचान उजागर हो गई।
उन्हें सियालकोट और मियांवाली की जेलों में रखा गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गईं। 1985 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, जो बाद में आजीवन कारावास में बदल दी गई। उन्होंने 16 वर्षों तक जेल में यातना झेली और नवंबर 2001 में मियांवाली जेल में उनका निधन हो गया।
सरकारी प्रतिक्रिया और परिवार की पीड़ा
रवींद्र कौशिक ने जेल से कई पत्र भारत सरकार को लिखे, लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। उनके परिवार ने भी सरकार से अपील की, परंतु कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उनकी मां ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि उनका बेटा देश के लिए मरा, लेकिन देश ने उसे भुला दिया।
निष्कर्ष
रवींद्र कौशिक की कहानी भारतीय जासूसी इतिहास की सबसे साहसी और प्रेरणादायक गाथाओं में से एक है। उनकी बहादुरी, समर्पण और बलिदान को भले ही सरकार ने भुला दिया हो, लेकिन इतिहास उन्हें ‘ब्लैक टाइगर’ के नाम से हमेशा याद रखेगा।