भुवनेश्वर, ओडिशा: ओडिशा के नुआपड़ा जिले से स्वास्थ्य विभाग की एक चौंकाने वाली लापरवाही सामने आई है, जिसने अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकॉल और कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। खड़ियाल सब-डिविजन अस्पताल में एक दो साल के बच्चे को इंजेक्शन लगाने की बजाय, ड्यूटी पर मौजूद नर्स ने बच्चे की माँ के पेट में ही इंजेक्शन ठोक दिया। इस घटना के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और अस्पताल प्रशासन की जवाबदेही पर बड़े पैमाने पर बहस छिड़ गई है।
क्या है पूरा मामला
जानकारी के अनुसार, खड़ियाल ब्लॉक के बड़गां के निवासी राजू टांडी और अंजू टांडी शुक्रवार को अपने दो साल के बेटे डुलेश्वर को तेज बुखार होने पर खड़ियाल सब-डिविजन अस्पताल लेकर आए थे। उन्होंने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. महेन्द्र कुमार माझी को बच्चे को दिखाया। डॉ. माझी ने डुलेश्वर के इलाज के लिए दवा लिखी और पैरासिटामोल का इंजेक्शन लगाने के लिए नर्स के पास भेजा।
लेकिन यहीं एक बड़ी और अक्षम्य गलती हो गई। डुलेश्वर को इंजेक्शन देने के बजाय, इमरजेंसी रूम में ड्यूटी पर मौजूद नर्स रश्मिता पंडा ने लापरवाही दिखाते हुए इंजेक्शन माँ अंजू टांडी के पेट में ही लगा दिया।
अंजू टांडी ने खुद बताया कि जब उसने अपने बेटे को इंजेक्शन लगवाने के लिए उसका पैंट नीचे किया, तो नर्स ने बिना ध्यान दिए इंजेक्शन उसके पेट में ही लगा दिया। इस घटना के बाद अंजू के पेट में तेज दर्द शुरू हो गया और इंजेक्शन का निशान भी साफ दिखाई दे रहा है।
डॉक्टर का बयान और ‘कम डोज’ का तर्क
इस पूरे मामले पर जब डॉ. महेन्द्र कुमार माझी से सवाल किया गया, तो उन्होंने घटना की पुष्टि की। डॉ. माझी ने बताया, “हमारे पास एक मरीज आया था जिसे सर्दी, खांसी और बुखार था। क्योंकि बारिश का दिन है और मलेरिया का प्रकोप भी है, हमने मरीज को मलेरिया टेस्ट करवाने की भी सलाह दी थी। आज क्योंकि बुखार बहुत ज्यादा था, लिहाजा हमने मरीज को पैरासिटामोल का इंजेक्शन लगवाने को भी कहा था। यहां इमरजेंसी रूम में हमारी नर्स मरीज को दवा देती हैं।”
डॉ. माझी ने आगे कहा, “दुर्भाग्यवश, जिस समय नर्स मरीज बच्चे को इंजेक्शन दे रही थी, उस वक्त बच्चे ने अपना शरीर हिला दिया, जिसकी वजह से इंजेक्शन बच्चे की माँ के पेट में जा लगा। इसकी जानकारी मुझे मरीज बच्चे की माँ ने दी। हम नर्स से इस मामले के बारे में पूछताछ करेंगे, लेकिन जो पैरासिटामोल का इंजेक्शन बच्चों को दिया जा रहा था, वह बेहद कम डोज का था, जो लगभग 0.4 एमजी का था। बच्चों को जितने डोज की जरूरत थी, इंजेक्शन में सिर्फ उतनी ही दवाई भरी हुई थी।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पैरासिटामोल के 0.4 एमजी के डोज से माँ को किसी भी तरह की कोई असुविधा नहीं होगी, जिसकी जानकारी उन्होंने अंजू टांडी को दे दी है। “अगर इंजेक्शन में कोई और दवा भरी होती, तो हम उस वक्त उस दवा के अनुसार मरीज बच्चे की माँ का इलाज करते, पर अभी दुर्भाग्यवश यह हादसा हो गया।”
नर्स पर बैठेगी जांच, लेकिन लापरवाही पर गंभीर सवाल
डॉ. माझी ने अंत में कहा, “स्टाफ नर्स ने जिस तरह की हरकत की है, हम निश्चित तौर पर नर्स पर इंक्वायरी बैठाएंगे क्योंकि अगर कोई और दवा इंजेक्शन में भरी होती तो क्या होता?”
यह घटना अस्पतालों में लापरवाही के गंभीर हालात को उजागर करती है और स्वास्थ्य विभाग से कड़ी कार्रवाई की मांग उठ रही है। यह सिर्फ एक बच्चे को गलत जगह इंजेक्शन लगाने का मामला नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि चिकित्सा कर्मियों के प्रशिक्षण, सतर्कता और मरीजों की सुरक्षा प्रोटोकॉल में कितनी बड़ी खामियां मौजूद हैं। ऐसे मामलों से न केवल मरीजों का विश्वास डगमगाता है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।