पितृ पक्ष में महालक्ष्मी व्रत का दैविक संयोग : जानिए व्रत की परंपरा,शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व
पितृपक्ष में महालक्ष्मी व्रत का दैवीय संयोग: सुख-समृद्धि के लिए करें 16 दिवसीय अनुष्ठान


रायपुर। इस वर्ष पितृपक्ष के दौरान महालक्ष्मी व्रत का समापन हो रहा है, जो एक दुर्लभ और शुभ संयोग माना जा रहा है। 16 दिनों तक चलने वाला यह पावन व्रत इस साल 14 सितंबर यानि आज संपन्न होगा। इसे गजलक्ष्मी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें हाथी पर विराजमान देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। हाथी को शक्ति, समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
पितृपक्ष में भी शुभ फलदायी है महालक्ष्मी व्रत
यूं तो पितृपक्ष में तर्पण और पिंडदान के माध्यम से पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन महालक्ष्मी व्रत का समापन इसी अवधि में होना इसे और भी विशेष बना देता है। यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक चलता है। चूंकि इसकी शुरुआत पितृपक्ष से पहले हो जाती है, इसलिए यह पितृपक्ष के दौरान भी विधि-विधान से किया जाता है और इसे अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है।
पौराणिक कथाओं में महालक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत का महत्व कई पौराणिक कथाओं में वर्णित है।
- महाभारत काल की कथा: महाभारत काल में गांधारी के सौ पुत्रों ने मिट्टी से विशाल हाथी बनाकर पूजा की थी। जब कुंती के पांच पुत्रों के लिए यह संभव नहीं हुआ, तो इंद्रदेव ने अपना ऐरावत हाथी भेजा, जिसकी पूजा कुंती ने की। तभी से गजलक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई।
- विष्णु भक्त ब्राह्मण की कथा: एक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण भगवान विष्णु की उपासना तो करता था, लेकिन उसके जीवन में सुख-समृद्धि नहीं थी। एक महिला ने उसे महालक्ष्मी के पूजन की सलाह दी। ब्राह्मण ने देवी लक्ष्मी की पूजा की और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई। यह कथा दर्शाती है कि भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की उपासना भी उतनी ही आवश्यक है।
व्रत के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
इस वर्ष महालक्ष्मी व्रत का शुभ मुहूर्त 14 सितंबर को सुबह 5 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह 3 बजे तक रहेगा। पूजा ब्रह्म मुहूर्त से लेकर संध्या काल तक की जा सकती है।
विशेष पूजा के लिए कुछ शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
सुबह: 9:15 बजे से 10:50 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त: 11:55 बजे से 12:45 बजे तक।
दोपहर: 2:00 बजे से 3:30 बजे तक।
संध्या: 6:30 बजे से 8:00 बजे तक।
महालक्ष्मी व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने वाला एक दिव्य अनुष्ठान भी है। पितृपक्ष में इसका समापन एक विशेष आध्यात्मिक संयोग माना जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी होता है।